भाषा के प्रकार / types of language
आज हम यहाँ पर भाषा के प्रकार के बारे में जानेंगे –
दुनिया भर में अनेक प्रकार की भाषाएं (Languages) बोली जाती है। अलग-अलग क्षेत्रों के लोग अलग-अलग प्रकार की भाषा काम लेते हैं। संसार में हजारों की संख्या में भाषाओका प्रयोग किया जाता है।
इन भाषाओं का विकास संसार की अलग-अलग क्षेत्रों में हुआ है मनुष्य के लिए इन सब भाषाओं को सीखना संभव नहीं है।
अनेक भाषाविज्ञ ने दुनिया की सारी भाषाओं को मुख्य रुप से 7 वर्गों में विभाजित किया है।
इन सभी भाषा के प्रकार और bhasha ka mahatva को निम्न प्रकार से स्पष्ट किया जा रहा है –
भाषा के प्रकार / types of language
1.प्राचीन या संस्कृति भाषा
2.मूल भाषा
3.मातृभाषा
4 राष्ट्रीय भाषा
5.राष्ट्रभाषा
6. राजभाषा
7. अंतर्राष्ट्रीय या विदेशी भाषा
1. प्राचीन भाषा (Ancient language)-
इस भाषा को संस्कृति भाषा के नाम से भी जाना जाता है। जिस भाषा में राष्ट्र का प्राचीन साहित्य सुरक्षित हो
और जिसके अध्ययन से तत्कालीन सामाजिक एवं सांस्कृतिक जीवन ,ज्ञान-विज्ञान, कला, शिल्प आदि का परिचय
मिल सके उसे प्राचीन भाषा कहते हैं। संस्कृत हमारे देश की सांस्कृतिक भाषा है।
प्राचीन भाषा का महत्व Importance-
प्राचीन भारतीय साहित्य प्राचीन भाषा में है।प्राचीन भारतीय सभ्यता,संस्कृति, ज्ञान-विज्ञान के परिचायक मूल स्रोत- वेद,उपनिषद,पुराण, रामायण,महाभारत आदि साहित्यिक ग्रंथ आधुनिक भारतीय भाषाओं के साहित्यिक रचना के लिए आधार स्तंभ है।
संस्कृत समस्त भारतीय भाषाओं की जननी है। संस्कृत से ही कर्मोत्तर प्राकृत,पाली और अपभ्रंश भाषा का और अपभ्रंशो से ही
आधुनिक उत्तर भारतीय भाषाओं हिंदी,गुजराती, मराठी, बंगाली,असमिया,उड़िया,कश्मीरी पंजाबी आदि का विकास हुआ है।
उनके शब्द भंडार में बड़ी समानता है।
संस्कृत का प्रभाव दक्षिण भारतीय भाषाओं तेलुगू,कन्नड़, मलयालम और तमिल पर भी विशेष रुप से पड़ा है।
तेलुगू कन्नड़ और मलयालम का लगभग 70% शब्द भंडार और तमिल का 15% शब्द भंडार संस्कृत भाषा का ही है।
अगाध साहित्य, अपार शब्द भंडार,नवीन शब्द रचना की असीम शक्ति और सामर्थ्य लालित्यपूर्ण अभिव्यंजना क्षमता आदि गुणो के कारण संस्कृत का बहुत महत्व है।
यह भारतीय जीवन के धार्मिक विधि विधानों अनुष्ठानों और संस्कारों की भाषा रही है। निसंदेह ही यह 10 वीं शताब्दी तक भारत की राष्ट्रभाषा रही है।
types of language/bhasha ke prakar
2. मूल भाषा( original language)-
इस भाषा की उत्पत्ति प्राचीन काल में उन क्षेत्रों पर हुई होगी,जहां पर बहुत से लोग एक साथ रहते होंगे ।
ऐसे स्थानों में किसी एक स्थान की भाषा जो प्रारंभ से उत्पन्न हुई होगी तथा आगे चलकर जिससे ऐतिहासिक और भौगोलिक आदि कारणों से अनेक भाषाएं,बोलिया तथा उप बोलियां आदि बनी होंगी।
मूल भाषा कही जाती है,उदाहरण के लिए- यूरोपीय परिवारों की भाषाओं को ही ले लो तो इसकी मूल भाषा यूरोपीय भाषा थी जिस का प्रादुर्भाव एक साथ रहने वाले कुछ लोगों में आरंभ हुआ होगा।
मूल जगह पर रहते हुए जब वहां की जनसंख्या बढ़ने लगी और भोजन आदि की कमी पड़ने लगी,तो कुछ लोग वहीं रह गए और कुछ लोग अलग-अलग भागों में बट कर भिन्न-भन्न दिशाओं में चल पड़े,जहां-जहां भी वे गये
वहां की भौगोलिक परिस्थितियों के कारण उनके जीवन में परिवर्तन हुआ होगा और भाषा में भी विकास हुआ होगा। उन भाषाओं के विकास का परिणाम वर्तमान की हजारों प्रचलित भाषाओं के रुप में हमारे सामने है।
उदाहरण के लिए- वैदिक संस्कृत से अनेक भाषाओं -संस्कृत,प्राकृत,पाली,अपभ्रंश,कश्मीरी,हिंदी,लहंगा,गुजराती,मराठी पंजाबी,बंगाली, आसामी,उड़िया और हिंदी का उद्भव और विकास हुआ। अतः वैदिक संस्कृत इन सब भाषाओं की मूल भाषा है।
ऊपर दी गई सभी उदाहरण से स्पष्ट होता है कि एक भाषा से उत्पन्न अनेक भाषाओं को व्यवहार में लाने वाले लोगों में एक तारतम्य- सामंजस्य रहा है।
जिससे अलग-अलग भाषाओं में वृहद साहित्य की रचना हुई जो मानव जाति के ज्ञान वृद्धि का आगार है। types of la\
3. मातृभाषा (Mother toungue)-
सामान्यत: जिस भाषा को व्यक्ति अपने शैशव काल में अपनी माता एवं संपर्क में आने वाले व्यक्तियों का अनुसरण करके सीखता है
उसे उस व्यक्ति की मातृभाषा कहा जाता है। परंतु भाषा विज्ञान में इसे बोली कहा जाता है।
भाषा वैज्ञानिक कई समान बोलियों की प्रतिनिधि बोली को विभाषा और कई सम्मान की भाषाओं की प्रतिनिधि विभषा को भाषा कहते हैं।
यही भाषा क्षेत्रों के व्यक्तियों की मातृ भाषा मानी जाती है।
उदाहरण के लिए हिंदी भाषा की अनेक बोलियां है ब्रज,अवधि, बुंदेली, खड़ी बोली,कन्नौजी, छत्तीसगढ़ी आदि। इनमें खड़ी बोली को ही भाषा माना जाता है और यही हिंदी भाषा भाषी क्षेत्र के व्यक्तियों की मातृ भाषा मानी जाती है।
इनमें खड़ी बोली को ही भाषा माना जाता है और यही हिंदी भाषा भाषी क्षेत्र के व्यक्तियों की मातृभाषा मानी जाती है।
मातृभाषा का महत्व-
अपनी मातृभाषा का व्यक्ति पर अमित प्रभाव पड़ता है, इसी भाषा में वह सामाजिक व्यवहार करता है। अपना विचार,चिंतन, ज्ञान-विज्ञान का ज्ञान इसी भाषा से प्राप्त करता है। वह व्यक्ति की अभिव्यक्ति का और भावात्मक विकास का आधार है। types of language/bhasha ke prakar
4. राष्ट्रीय भाषा National language-
संसार में हजारों भाषाएं हैं इनमें कुछ बातें ऐसी होती है जो राष्ट्र के इतिहास, सभ्यता,संस्कृति,आचार-विचार एवं आकांक्षाएं सुरक्षित रहती है।
इन्हें उस राष्ट्र की राष्ट्रीय भाषा कहा जाता है।
उदाहरण के लिए- हमारे देश में हिंदी, बंगाली, कश्मीरी,मराठी,गुजराती,तमिल,तेलुगु, कन्नड़ और मलयालम आदि ऐसी भाषाएं हैं
जिनके साहित्य में हमारे राष्ट्र की सभ्यता एवं संस्कृति के दर्शन होते हैं।
rastriya bhasha ka mahatva–
यह सभी हमारे देश के लिए प्रेरणा के स्रोत हैं। देश एवं राष्ट्र की अखंडता और भावात्मक एवं राष्ट्रीय एकता की दृष्टि से इन भाषाओं का बहुत अधिक महत्व है।
5. राष्ट्रभाषा National language-
जब कोई भाषा आदर्श या परिनिष्ठित भाषा बनाने के बाद भी उन्नत होकर और भी महत्वपूर्ण बन जाती है।
तथा पूरे राष्ट्र या देश में अन्य भाषा क्षेत्र तथा अन्य भाषा परिवार के क्षेत्र में उसका प्रयोग सार्वजनिक कामों,समस्त प्रशासनिक एवं न्याय,शैक्षिक एवं सांस्कृतिक औद्योगिक एवं वाणिज्य के कार्यों में होने लगता है
तो वह भाषा राष्ट्रभाषा का स्थान पा लेती है। जिससे राष्ट्र की बौद्धिक चेतना का विकास और स्वरो में भारतीय आत्मा का स्वर मुखरित हो सके ।
उदाहरण के लिए-हिंदी को भारत में राष्ट्र भाषा का स्थान प्राप्त है या भारत की राष्ट्रभाषा हिंदी है।
Rastra bhasha ka mahatva–
यह राष्ट्रीयता की पहचान है। राष्ट्रीय गौरव और सम्मान का भी प्रतीक है। भावात्मक एकता का आधार होती है। इससे राष्ट्र की बौद्धिक चेतना का विकास होता है। लोगों की संपर्क स्थापन एवं विचारों के आदान-प्रदान का आधार है।
6. राजभाषा Official language-
जिस भाषा का प्रयोग किसी राज्य के प्रशासनिक कार्यों में किया जाता है। उसे राज भाषा या शासकीय भाषा कहते हैं।
सभी राज्यों में जन भाषा को ही राजभाषा बनाया जाता है। वहां की राजकार्य वही की भाषा में होते हैं।
अतः प्रांतों की राजभाषा वहां की मातृभाषा होती है।
उदाहरण के लिए- जेसे पंजाब की राजभाषा एवं मातृभाषा पंजाबी है,गुजरात की गुजराती, तमिलनाडु की तमिल,भाषा है। हिंदी भाषी प्रांतों की राज्य भाषा और मातृभाषा हिंदी है। भारत की राष्ट्र भाषा हिंदी और राजभाषा भी हिंदी ही है।
7. अंतर्राष्ट्रीय भाषा International language-
इस भाषा को विदेशी भाषा के नाम से भी जाना जाता है। एक राष्ट्र को दूसरे राष्ट्र से संबंध स्थापित करने के लिए भाषा की आवश्यकता पड़ती है।
अतः जिस भाषा के माध्यम से संसार के विभिन्न राष्ट्रीय विचारों का आदान-प्रदान करते हैं । उसे अंतरराष्ट्रीय या विदेशी भाषा कहते हैं।
अंतर्राष्ट्रीय आधार पाने के कई कारण हैं जैसे-राजनीतिक, उद्योगिक, वैज्ञानिक, आविष्कार एवं संचार तंत्र आदि।
जैसे- अंग्रेजी भाषा को एक अंतर्राष्ट्रीय भाषा होने का गौरव प्राप्त है । यूं तो जर्मनी,फ्रेंच, रूसी एवं चीनी भाषा (Germany, French, Russian and Chinese Language) भी अंतर्राष्ट्रीय महत्व की है पर अंग्रेजी की अपेक्षा बहुत सीमित है।
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भाषाओं के रूप-मातृभाषा,राष्ट्रीय भाषा,राजभाषा,अंतरराष्ट्रीय भाषा
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