मानव का विकास माता के गर्भ से ही शुरु हो जाता है तथा एक निश्चित दिशा में विकसित होता है। कुछ मनोवैज्ञानिकों (Psychologist ) ने बालक की वृद्धि एवं विकास के अलग-अलग सिद्धांत बताए हैं जो निम्न है।
वृद्धि एवं विकास के सिद्धांत-Principles of growth and development
वृद्धि एवं विकास के सिद्धांत निम्न है –
1. विकास प्रक्रिया के समान प्रतिमान का सिद्धांत-Pniform pattern
पृथ्वी पर पाए जाने वाले प्रत्येक प्राणी जाति में विकास प्रक्रिया की गति सम्मान प्रतिमान का अनुसरण करती है। पूरे विश्व में मनुष्य का विकास एक समान अवस्था से प्रभावित होता है। वह चाहे विषय के किसी भी कोने में पैदा हुआ हो।
2. सामान्य से विशिष्ट की ओर बढ़ने का सिद्धांत-Peneral to particular
बालक का विकास सदेव सामान्य से विशिष्ट की ओर बढ़ता है। उदाहरण-एक छोटा बच्चा पहले छोटे छोटे शब्द बोलना सीखता है जैसे मां, पापा, नाना,चाचा आदि। इसके बाद बालक धीरे-धीरे शब्दों के समूह है और फिर वाक्य बोलने लगता है इस प्रकार भाषा का विकास सामान्य से विशिष्ट की ओर होता है।
इसी प्रकार सामाजिक,शारीरिक,संवेगात्मक व मानसिक विकास भी सामान्य से विशिष्ट की ओर बढ़ते हैं।
3. सिर से पांव की और वृद्धि का सिद्धांत-Principle of cephlocaudal Sequence
मनुष्य की विकास प्रक्रिया सिर से पांव की ओर चलती है। प्राणियों में सर्वप्रथम सिर का विकास होता है और इसके बाद अन्य अंगों का तथा अंत में पैरों का विकास होता है। जिस प्रकार एक नवजात शिशु सर्वप्रथम अपने सिर को इधर-उधर घूम आता है फिर धीरे धीरे वह अपनी गर्दन को स्थिर करने लगता है। इसके बाद वह बैठ नहीं लगता है और सबसे अंत में वह चलना सीखता है। यह सिद्धांत शारीरिक विकास की प्रक्रिया पर आधारित है।
4. समीप से दूर का सिद्धांत-Principle of proximodistal sequence
इस सिद्धांत के अनुसार मानव के विकास का केंद्र बिंदु तंत्रिका तंत्र ,मेरूरज्जु या स्नायु तंत्र होता है। सबसे पहले स्नायु तंत्र का विकास होता है तथा इसके बाद स्नायु तंत्र के पास वाले अंगों का विकास होता है जैसे चेस्ट, ह्रदय आदि।
सब के अंत में दूरस्थ अंगों का विकास होता है जैसे हाथ व पैरों की अंगुलियां।
5. निरंतर प्रक्रिया का सिद्धांत-Continuous process
मानव का विकास धीरे-धीरे वह निरंतर रूप से जीवन पर्यंत चलता रहता है। विकास मानव के गर्भाधान से लेकर मृत्युपर्यंत तक चलने वाली प्रक्रिया है यह अनवरत प्रक्रिया है।
6. विभिन्नता का सिद्धांत-Principle of variation
मानव जीवन की अवस्थाओं में विकास की गति सम्मान होती है। शैशवावस्था हुआ है समय है जिस में वृद्धि तथा विकास की गति बहुत अधिक होती है। बाल्यावस्था में यह प्रक्रिया कुछ धीमी हो जाती है तथा किशोरावस्था में यह फिर से तेज हो जाती है। लड़की लड़कियों के विकास में विभिन्नता होती है।
7. संगठित प्रक्रिया का सिद्धांत-Unified Process
विकास एक संगठित प्रक्रिया है शारीरिक विकास के साथ-साथ व्यक्ति के संवेगात्मक ,सामाजिक,मानसिक अन्य प्रकार के विकास भी पूर्ण होते हैं। इस प्रकार वह सभी प्रकार की विकास हो के मध्य संबंध होता है। तथा भी साथ साथ चलते हैं।