विभिन्न दार्शनिकों के अनुसार ज्ञान प्राप्ति के साधन | ज्ञान प्राप्ति के स्रोत (sources of knowledge)

ज्ञान प्राप्ति के साधन Sources of attainment of knowledge-

विभिन्न दार्शनिकों द्वारा ज्ञान प्राप्ति के साधनों का विभिन्न प्रकार से विवेचन किया गया है चार्वाक केवल प्रत्यक्ष को ही प्रमाण मानता है।
बौद्ध दर्शन में प्रत्यक्ष और अनुमान दो प्रमाण माने गए हैं, जबकि सांख्य प्रत्यक्ष, अनुमान और शब्द इन तीन प्रमाणों को मानता है। sources of knowledge

ज्ञान प्राप्ति के स्रोत (sources of knowledge)

न्याय दर्शन प्रत्यक्ष, अनुमान, उपमान तथा शब्द चार प्रमाण मानता है।
मीमांसक छ: प्रमाण मानते हैं अथार्त अर्थापत्ती एवं अनु उपलब्धि अन्य दो प्रमाण और है, जबकि पौराणिक मानता के अनुसार प्रमाण 8 हैं- प्रत्यक्ष, अनुमान, उपमान, शब्द, अर्थापति, अनउपलब्धि संभव और ऐतिहा।
आज हम यहां पर विभिन्न दर्शन एवं दार्शनिको के अनुसार ज्ञान प्राप्ति के साधन पर विचार प्रकट करेंगे-

दर्शनों के अनुसार ज्ञान प्राप्ति के साधन [sources of knowledge]-

1. आदर्शवाद एवं ज्ञान-
आदर्शवादी विचारक प्लेटो के अनुसार विचारों की देवीय व्यवस्था और आत्मा परमात्मा के स्वरूप को जानना ही सच्चा ज्ञान है। ज्ञान को उन्होंने तीन रूपों में बांटा है- इंद्रिय जन्य, सम्मति जन्य और चिंतन जन्य।
इंद्रिय जन्य ज्ञान को वे असत्य मानते थे क्योंकि इंद्रियों द्वारा हम जिन वस्तुओं एवं क्रियाओं का ज्ञान प्राप्त करते हैं वे सब परिवर्तनशील और एतदर्श असत्य है।
सम्मति जन्य ज्ञान कौ वे आंशिक रूप से सत्य मानते थे क्योंकि वह भी अनुमान जन्य होता है और अनुमान सत्य भी हो सकता है, असत्य भी।
उनके अनुसार चिंतन जन्य ज्ञान ही सत्य होता है। क्योंकि वह हमें विचारों के रूप में प्राप्त होता है और विचार अपने में अपरिवर्तनशील और एतदर्श  सत्य होते हैं। इस सत्य ज्ञान की प्राप्ति के लिए प्लेटो ने नैतिक जीवन पर बल दिया है और नैतिक जीवन की प्राप्ति के लिए विवेक पर।
इस प्रकार उनकी दृष्टि से ज्ञान का आधार विवेक होता है।
ब्रकले सत्य ज्ञान की प्राप्ति का आधार आत्मा को मानते थे।
कांट ने आत्मा के स्थान पर तर्कना बुद्धि को ज्ञान का आधार माना है।
उनका तर्क है कि प्रत्यक्ष ज्ञान अव्यवस्थित होता है, तर्कना बुद्धि से ही वह व्यवस्थित होता है।

2. प्रकृतिवाद एवं ज्ञान- sources of knowledge
प्रकृति वादी प्रकृति के ज्ञान को वास्तविक ज्ञान मानते हैं। प्राय:प्रकृति का अर्थ उस रचना से लिया जाता है जो स्वाभाविक रूप से विकसित होती है और जिसके निर्माण में मनुष्य का कोई हाथ नहीं होता, जैसे- पृथ्वी, समुद्र, पहाड़, आकाश, सूर्य, चंद्रमा, तारे, बादल, वर्षा, वनस्पति और जीव जंतु, परंतु दार्शनिक दृष्टि से प्रकृति संसार का वह मूल तत्व है जो पहले से था, आज भी है और भविष्य में भी रहेगा।
इसमें वे क्रियाएं भी निहित है जो निश्चित नियमों के अनुसार होती है। जैसे- पहले होती थी वैसे ही आज भी होती है और वैसे ही भविष्य में होती रहेगी। उदाहरण के लिए जल, बर्फ और वास्प यह प्राकृतिक पदार्थ हैं इनकी रचना सम्मान तत्वों से हुई है। हम जानते हैं कि बर्फ से जल, जल से वाष्प, वाष्प से जल और जल से बर्फ, यह सब निश्चित नियमों के अनुसार बनते और बिगड़ते हैं।
पदार्थों के मूल तत्व और उनके बनने बिगड़ने के नियमों को ही प्रकृतिवाद प्रकृति मानता है और इनके ज्ञान को वास्तविक ज्ञान मानता है। इन सब का ज्ञान भौतिक विज्ञान के द्वारा होता है और भौतिक विज्ञान का ज्ञान कर्मेंद्रियों तथा ज्ञानेंद्रियों द्वारा होता है। प्रकृतिवादी इंद्रीयनुभूत ज्ञान को ही सच्चा ज्ञान मानते हैं। उनकी दृष्टि से सच्चे ज्ञान की प्राप्ति के लिए मनुष्य को स्वयं निरीक्षण परीक्षण करना चाहिए। प्रकृति वादियों का विश्वास है कि ज्ञान प्राप्ति की क्रिया में मन और मस्तिष्क संयोजक का कार्य करते हैं।

3. मानवता एवं ज्ञान- sources of knowledge
जैसा कि इसके नाम से ही स्पष्ट है कि मानवता का केंद्र बिंदु मानव है। मानव वादी पदार्थजन्य संसार की सत्ता में विश्वास करते हैं तथा इस सृष्टि का सर्वोच्च फल मानव को माना है।
जगत की समस्त वस्तुओं के स्वरूप को जानने के लिए वास्तविक ज्ञान की आवश्यकता होती है।वास्तविक ज्ञान मनुष्य की इंद्रियों के द्वारा ही होता है मानववादी इंद्रियदत्त ज्ञान को महत्व देते हैं। इस इंद्रिय दत्त ज्ञान के लिए ये ज्ञानेंद्रियां तथा कर्मेंद्रीय दोनों को महत्व देते हैं। इनके द्वारा प्राप्त प्रत्यक्ष ज्ञान को यह तर्क की कसौटी पर कसकर स्वीकार करने के पक्ष में है अर्थात यह ज्ञान के स्रोत के रूप में तर्क को विशेष महत्व देते हैं।

4. अस्तित्ववाद एवं ज्ञान-
जो व्यक्ति जिस प्रकार के सत्य को स्वीकार करता है उसके लिए उसी प्रकार के ज्ञान के स्रोत होंगे, क्योंकि अस्तित्ववाद व्यक्तिवाद को महत्व देता है तो इसमें ज्ञान का स्वरूप भी व्यक्तिनिष्ट होना स्वाभाविक है। व्यक्ति निष्ट ज्ञान का अभिप्राय है कि व्यक्ति अपने जीवन काल में जो अनुभव करता है यह उस व्यक्ति का व्यक्तिगत ज्ञान होता है, परंतु यह आवश्यक नहीं है कि जो ज्ञान उस व्यक्ति को हुआ है वह दूसरे व्यक्तियों के लिए भी उपयोगी व सार्थक हो। ज्ञान का कोई ठोस आधार न होने के कारण अस्तित्ववाद अनुभवजन्य ज्ञान को ही महत्व देता है जिसे तर्क की कसौटी पर परखा गया हो। sources of knowledge

5. यथार्थवाद एवं ज्ञान-
यथार्थवादी मनुष्य को एक भौतिक प्राणी मानते हैं पर ये उसकी बुद्धि को भी शरीर का एक अंग मानते हैं, उसे स्नायु जनित मानते हैं। इनके अनुसार वैज्ञानिक जिसे वैज्ञानिक भाषा में मस्तिष्क कहते हैं उसे ही सामान्य भाषा में बुद्धि कहा जाता है। ज्ञानेंद्रियों को यह ज्ञान प्राप्ति का साधन मानते हैं इनका तर्क है कि वस्तु का ज्ञान हमें ज्ञानेंद्रियों द्वारा होता है इसलिए वही सच्चा ज्ञान है। यथार्थवादी शब्दों के माध्यम से प्राप्त ज्ञान को भी इंद्रिय प्रत्यक्ष करने के बाद स्वीकार करने पर बल देते हैं। sources of knowledge

6. प्रयोजनवाद एवं ज्ञान- sources of knowledge
प्रयोजन वादियों के अनुसार अनुभवों की पुनर्रचना ही ज्ञान है। यह ज्ञान को साध्य नहीं अपितु मनुष्य जीवन को सुखमय बनाने का साधन मानते हैं। इनके अनुसार ज्ञान की प्राप्ति सामाजिक क्रियाओं में भाग लेने से स्वयं होती है। कर्मेंद्रियों और ज्ञानेंद्रियों को यह ज्ञान का आधार, मस्तिष्क तथा बुद्धि को ज्ञान का नियंत्रक,और सामाजिक क्रियाओं को ज्ञान प्राप्त करने का माध्यम मानते हैं। sources of knowledge

7. सांख्य दर्शन और ज्ञान-
सांख्य दर्शन में ज्ञान को दो भागों में बांटा है-एक पदार्थ ज्ञान, इसे वह यथार्थ ज्ञान कहता है और दूसरा प्रकृति-पुरुष के भेद का ज्ञान, इसे वह विवेक ज्ञान कहता है।
संख्या के अनुसार हमें पदार्थों का ज्ञान इंद्रियों द्वारा होता है इंद्रियों से यह ज्ञान मन, मन से अहंकार, अहंकार से बुद्धि और बुद्धि से पुरुष को प्राप्त होता है।
दूसरी ओर सांख्य यह मानता है कि पुरुष बुद्धि को प्रकाशित करता है, बुद्धि अहंकार को जागृत करती है, अहंकार मन को क्रियाशील करता है और मन इंद्रियों को क्रियाशील करता है, उनके और वस्तु के बीच संसरग भी स्थापित करता है।
सांख्य का स्पष्टीकरण है कि इंद्रियां, मन, अहंकार और बुद्धि ये सब प्रकृति से निर्मित है अतः यह जड़ है और जड़ में ज्ञान का उदय नहीं हो सकता। sources of knowledge

8. योग दर्शन एवं ज्ञान-
योग दर्शन की ज्ञान मीमांसा बी सांख्य आधारित है। योग्य भी वस्तु जगत के ज्ञान के लिए बाह्य उपकरणों को आवश्यक मानता है। अंतर केवल इतना है कि वह आंतरिक उपकरणों मन, बुद्धि और अहंकार के समूचे को चित्त की संज्ञा देता है।
योग दर्शन के अनुसार मनुष्य को पदार्थ का ज्ञान इंद्रियों और चित्र के माध्यम से अंत में आत्मा को प्राप्त होता है। परंतु उसको दृष्टि से योगी को यह ज्ञान सीधे प्राप्त हो जाता है। उसका स्पष्टीकरण है कि योग क्रिया के अंतिम चरण समाधि की स्थिति में आत्मा का परमात्मा से योग हो जाता है, और चुमकी परमात्मा सर्वज्ञ है इसलिए उस स्थिति में मनुष्य को कुछ जानना शेष नहीं रह जाता, वह सर्वज्ञ हो जाता है। sources of knowledge

9. न्याय दर्शन एवं ज्ञान-
न्याय दर्शन में आत्मा के ज्ञान को विशेष महत्व दिया है। इसी संदर्भ में न्याय दर्शन के 2 विचार हैं-प्रथम नव्य न्याय दर्शन के अनुसार मन के साथ आत्मा का संयोग होने पर ही ‘मैं हूं’ का एक प्रत्यक्ष बोध होता है। यह मानस का प्रत्यक्ष से आत्मा का साक्षात ज्ञान होता है। आत्मा को ज्ञाता और भोगता के रूप में माना गया है। आत्मा का ज्ञान किसी न किसी गुण के द्वारा होता है अपनी आत्मा का प्रत्यक्ष स्वयं ज्ञान किया जा सकता है। अन्य व्यक्तियों की आत्मा का ज्ञान उनके कार्यों से अनुमान लगाकर कर सकते हैं।

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10. अद्वैत वेदांत दर्शन एवं ज्ञान-
शंकर ने ज्ञान को दो भागों में बांटा है अपरा और परा।
इस वस्तु जगत एवं मनुष्य जीवन के विभिन्न पक्षों के ज्ञान को उन्होंने अपरा ज्ञान कहा है। उनकी दृष्टि से इस ज्ञान की केवल व्यावहारिक उपयोगिता है, इससे मनुष्य अपने जीवन के अंतिम उद्देश्य मुक्ति की प्राप्ति नहीं कर सकता।
वेद, ब्राह्मण, आरण्यक, उपनिषद एवं गीता की तत्व मीमांसा को वे परा ज्ञान कहते थे। उनकी दृष्टि से यही सच्चा ज्ञान होता था इस ज्ञान के द्वारा ही मनुष्य मुक्ति प्राप्त कर सकता है।
इन दोनों प्रकार के ज्ञान को प्राप्त करने के लिए शंकर ने श्रवण मनन तथा निधिआसन की विधि का समर्थन किया। sources of knowledge

11. चार्वाक दर्शन एवं ज्ञान-
ज्ञान प्राप्ति के लिए चार्वाक दर्शन ‘प्रत्यक्ष’ को ही एकमात्र प्रमाण मानता है।
अनुमान,शब्दादी परमाणु को यह विश्वसनीय नहीं मानता।
प्रत्यक्ष प्रमाण के अनुसार, केवल इंद्रियों के द्वारा ही विश्वास योग्य ज्ञान प्राप्त हो सकता है।
इंद्रिय एवं वस्तु के संसर्ग से उत्पन्न ज्ञान ही प्रत्यक्ष है। समस्त प्रमेय अर्थात दृश्यमान जगत का ज्ञान प्रत्यक्ष के द्वारा होता है। अतः चार्वाक की दृष्टि में इंद्रिय ज्ञान ही एकमात्र यथार्थ ज्ञान है। वह अन्य प्रमाणों, विशेषकर अनुमान एवं शब्द का खंडन करता है। sources of knowledge

12. वैशेषिक दर्शन एवं ज्ञान-
वैशेषिक दर्शन में 7 पदार्थों को महत्व दिया गया है जिनमें से छह भाव तथा एक अभाव पदार्थ है। वैशेषिक के साथ पदार्थ इस प्रकार हैं- द्रव्य, धर्म, सामान्य, विशेष, समवाय तथा अभाव। sources of knowledge

13. बौद्ध दर्शन एवं ज्ञान-
बौद्ध दर्शन में ज्ञान प्राप्ति के केवल दो साधन प्रत्यक्ष और अनुमान को मान्यता दी गई है। बौद्ध दर्शन में शब्द को ज्ञान प्राप्ति का साधन नहीं माना गया है। अथारत शब्द को प्रमाण नहीं माना गया है। प्राय: आप पुरुष के वचन को शब्द प्रमाण कहा जाता है यथार्थ वक्ता को आप्त कहते हैं। अर्थात जो वस्तु जैसी है उसे उसी रूप में कहने वाला आप्त है। sources of knowledge
विश्वसनीय आदमी के वचनों को प्रमाण माना जाता है। बुद्ध ने ऐसे मत को स्वीकार नहीं किया। उनका कहना था कि किसी बात को इसलिए प्रमाण मत माने कि उसे किसी महान पुरुष ने कहा है अथवा जो कुछ स्वयं बुद्ध ने कहा है वह भी प्रमाण नहीं है। sources of knowledge

14. जैन दर्शन एवं ज्ञान-
जैन दर्शन का प्रमाण विचार उनके तत्व विचार से संबंधित है, क्योंकि जैन दर्शन के अनुसार वास्तव में ज्ञान आत्मा के स्वरूप का ही एक पक्ष है। जैन मतानुसार चैतन्य जीव का स्वरूप है। जीव सामान्यत अनंत ज्ञानमय है।

विभिन्न दार्शनिकों के अनुसार ज्ञान के स्रोत sources of knowledge-विभिन्न दार्शनिकों के अनुसार ज्ञान प्राप्ति के साधन | ज्ञान प्राप्ति के स्रोत (sources of knowledge)sources of knowledge

 1. विवेकानंद एवं ज्ञान-
स्वामी विवेकानंद ने ज्ञान को दो भागों में बांटा है-भौतिक ज्ञान और आध्यात्मिक ज्ञान।
भौतिक विज्ञान के अंतर्गत इन्होंने वस्तु जगत के ज्ञान को रखा है और आध्यात्मिक विज्ञान के अंतर्गत सूक्ष्म मार्गों (कर्म योग, भक्ति योग, राज योग, ज्ञान योग) के ज्ञान को रखा है।
विवेकानंद वस्तु जगत और सूक्ष्म जगत दोनों के ज्ञान को सत्य मानते थे। इनका तर्क है कि यह वस्तु जगत ब्रह्मा द्वारा ब्रह्मा से निर्मित है और सत्य है, तब यह जगत भी सत्य होना चाहिए, सत्य से असत्य की उत्पत्ति कैसे हो सकती है। अतः इसका ज्ञान भी सत्य ज्ञान की कोटि में आता है। जहां तक ज्ञान प्राप्ति के साधनों की बात है, इस संदर्भ में भी स्वामी विवेकानंद के विचार स्पष्ट हैं, इनके अनुसार वस्तु जगत का ज्ञान प्रत्यक्ष विधि और प्रयोग विधि से होता है और सूक्ष्म जगत का ज्ञान सत्संग, स्वाध्याय और योग द्वारा होता है, योग को तो यह किसी भी प्रकार के ज्ञान प्राप्त करने की सर्वोत्तम विधि मानते थे।

2. महात्मा गांधी एवं ज्ञान-
गांधीजी ने ज्ञान को दो वर्गों में विभाजित किया –भौतिक ज्ञान और आध्यात्मिक ज्ञान। 2 Types sources of knowledge
भौतिक विज्ञान के अंतर्गत इन्होंने भौतिक जगत एवं मनुष्य जीवन के विभिन्न पक्षों (सामाजिक, आर्थिक एवं राजनीतिक) के ज्ञान को रखा है। sources of knowledge
और आध्यात्मिक विज्ञान के अंतर्गत सृष्टि सृष्ठा और आत्मा परमात्मा संबंधित तत्व ज्ञान को रखा है। गांधी जी की दृष्टि से मनुष्य को दो प्रकार का ज्ञान आवश्यक है- भौतिक जीवन के लिए भौतिक ज्ञान आवश्यक है और आत्म ज्ञान अथवा ईश्वर प्राप्ति अथवा मोक्ष के लिए आध्यात्मिक ज्ञान आवश्यक है।
गांधीजी के अनुसार भौतिक ज्ञान की प्राप्ति इंद्रियों द्वारा की जा सकती है और आध्यात्मिक ज्ञान की प्राप्ति गीता पाठ, भजन कीर्तन और सत्संग द्वारा की जा सकती है। sources of knowledge

3. रविंद्र नाथ टैगोर एवं ज्ञान-
एक और भौतिक और आध्यात्मिक दोनों प्रकार के ज्ञान को सम्मान महत्व देते थे।यह भौतिक जगत के ज्ञान को उपयोगी ज्ञान और आध्यात्मिक जगत के ज्ञान को विशुद्ध ज्ञान कहते थे। इनकी दृष्टि से संसार की समस्त जड़ वस्तुओं और जियो में एकात्म भाव ही अंतिम सत्य हैं और इसकी अनुभूति ही मनुष्य जीवन का अंतिम लक्ष्य है।
ज्ञान प्राप्ति के साधनों के संबंध में गुरुदेव ने स्पष्ट किया कि भौतिक वस्तुओं एवं क्रियाओं का ज्ञान भौतिक माध्यम यानी कि इंद्रियों द्वारा प्राप्त होता है और आध्यात्मिक तत्व जैसे आत्मा परमात्मा का ज्ञान सूक्ष्म माध्यमों जैसे योग के द्वारा प्राप्त होता है। sources of knowledge
सूक्ष्म माध्यमों में इन्होंने प्रेम योग के महत्व को स्वीकार किया है। उन्होंने स्पष्ट किया कि आध्यात्मिक तत्व के ज्ञान के लिए सबसे सरल मार्ग प्रेम मार्ग है, प्रेम ही हमें मानव मात्र के प्रति संवेदनशील बनाता है यही हमें एकात्मक भाव की अनुभूति कराता है और यही हमें आत्मानुभूति और ईश्वर की प्राप्ति कराता है।

4. अरविंद घोष और ज्ञान-
गोश्त के अनुसार भौतिक एवं आध्यात्मिक दोनों तत्वों के मूल तत्व ब्रह्मा ही है इसलिए भौतिक एवं आध्यात्मिक तत्वों के अवैध को जानना ही सच्चा ज्ञान है।
प्रयोग की दृष्टि से इन्होंने ज्ञान को दो भागों में बांटा है -द्रव्य ज्ञान और आत्मज्ञान।
द्रव्य ज्ञान यानी कि जगत का ज्ञान को यह साधारण ज्ञान मानते थे और आत्मज्ञान को उच्च ज्ञान मानते थे।
इनकी दृष्टि से वस्तु जगत का ज्ञान ज्ञानेंद्रियों द्वारा और आत्म तत्व का ज्ञान अंतः करण द्वारा होता है। आत्म तत्व के ज्ञान के लिए यह योग ही क्रिया को आवश्यक मानते थे। sources of knowledge

5. जे कृष्णमूर्ति एवं ज्ञान-
जे कृष्णमूर्ति ने ज्ञान को तीन भागों में विभाजित किया है- वैज्ञानिक, सामूहिक और वेयष्टिक।
इन्होंने वैज्ञानिक ज्ञान की दृष्टि में उस ज्ञान को रखा है जो तथ्यों के विश्लेषण पर आधारित होता है,सामूहिक ज्ञान की श्रेणी में उस ज्ञान को रखा है जो मनुष्य के और मनुष्य के प्रकृति के प्रति संबंधों से संबंधित होता है। और वेयश्टिक ज्ञान की श्रेणी में उस ज्ञान को रखा है जो मनुष्य के अंतः करण से संबंधित होता है।इनकी दृष्टि से किसी प्रकार का ज्ञान बुद्धि से प्राप्त होता है और वास्तविक ज्ञान बुद्धि के निष्पक्ष होने से प्राप्त होता है। इन्होंने आगे स्पष्ट किया कि वास्तविक ज्ञान आंतरिक सत्ता का प्रतीक है। sources of knowledge
जीवन का मार्गदर्शक है और इसको चेतना द्वारा ही प्राप्त किया जा सकता है।

6. प्लेटो एवं ज्ञान-
प्लेटो के अनुसार ज्ञान के तीन प्रकार हैं- इंद्रिय जन्य ज्ञान, सम्मति ज्ञान और चिंतन जन्य ज्ञान।
इनके अनुसार इंद्रिय जन्य ज्ञान कभी यथार्थ नहीं हो सकता क्योंकि इंद्रियों द्वारा हम जिन वस्तुओं की अनुभूति करते हैं वह परिवर्तनशील होती है। सम्मति जन्य ज्ञानकुछ परिस्थितियों में सत्य हो सकता है लेकिन अनुमान जन्य होने के कारण यह भी अपूर्ण होता है। केवल चिंतन जन्य ज्ञान ही सत्य होता है क्योंकि यह तर्क के आधार पर विचारों के रूप में प्राप्त होता है।
प्लेटो के अनुसार यह विचार आत्मा के गुण है।मनुष्य शरीर में प्रवेश करने से पहले आत्मा इन विचारों से पूर्ण होती है, शरीर में आने के बाद वह इन्हें भूल सा जाती है और भौतिक स्तर पर विचार विमर्श करने और विश्लेषण एवं तर्क करने से उसके लिए विचारों को पुनः स्मरण करना संभव हो जाता है।
तब हम कह सकते हैं कि मनुष्य को ज्ञान हो गया।
ज्ञान से वह सत्य विचारों की अनुभूति करने में सफल होता है इन विचारों का ज्ञान ही सच्चा ज्ञान है।

7. सुकरात एवं ज्ञान-

सुकरात की दृष्टि से ज्ञान जाति विषयक सामान्य एवं संप्रत्ययात्मक होता है और सर्वव्यापी एवं सर्वमान्य होता है।
संप्रत्यय से तात्पर्य किसी एक ही जाति के अंतर्गत अनेक वस्तु अथवा जीव विशेष मैं निहित बुद्धि द्वारा आकर्षित सामान्य सार गुण से होता है।
सार गुण वह है जिसके बिना कोई वस्तु या जीव विशेष अपनी जाति के अंतर्गत नहीं माना जा सकता।
उदाहरण के लिए मनुष्य का काला गोरा होना उसका विशिष्ट गुण है, परंतु उसका बुद्धि प्रधान होना सामान्य गुण है, सार गुण हैं।
सुकरात की दृष्टि से वास्तविक ज्ञान वह है जो मनुष्य को अच्छे बुरे में भेद करने में सहायता करता है। यह यहां कहते थे कि ज्ञान सद्गुण है।
इस ज्ञान के होने पर मनुष्य में कोई दुर्गुण नहीं रह जाता वह सदैव अच्छे कार्य ही करता है।
अच्छे बुरे के विषय में इनका निर्णय था- अच्छा वह है जो मनुष्य मात्र के लिए आनंददायक है और बुरा वह है जो मनुष्य मात्र के लिए आनंददायक नहीं है। sources of knowledge
सुकरात के अनुसार सामान्य ज्ञान की प्राप्ति प्रत्यय के माध्यम से की जा सकती है परंतु परम सत्य का ज्ञान केवल बुद्धि एवं आत्मनिरीक्षण द्वारा हो सकता है। sources of knowledge

8. अरस्तु एवं ज्ञान-
अरस्तु के अनुसार ज्ञान के तीन स्तर हैं प्रथम इंद्रियां अनुभव जिसके द्वारा हम में केवल विशेष  का पृथक पृथक ज्ञान होता है।
दितीय है पदार्थ ज्ञान जिसके द्वारा हम विशेष मैं सामान्य को खोजते हैं,उनके कारण कार्य के संबंध को जानते हैं और इस ज्ञान का जीवन में उपयोग करते हैं।
तृतीय है तत्वज्ञान, यह परम द्रव्य, परम तत्व, शुद्ध सत्ता, सत्य अथवा ईश्वर का ज्ञान है। यह सर्वोत्तम ज्ञान है अरस्तू भौतिक एवं आध्यात्मिक दोनों प्रकार के ज्ञान को आवश्यक मानते थे, इनकी दृष्टि से किसी भी प्रकार का ज्ञान मनुष्य को अपनी इंद्रियों द्वारा प्राप्त होता है। इंद्रियों को यह ज्ञान प्राप्त करने का आधार मानते थे, इनका तर्क है कि सूक्ष्म की कल्पना भी स्थूल के आधार पर होती है। sources of knowledge

9. रूसो एवं ज्ञान-
रूसो के अनुसार प्रकृति का ज्ञान ही सच्चा ज्ञान है। प्रकृति शब्द का प्रयोग उसने कई रूपों में किया है – एक उसके लिए जो मनुष्य के पर्यटन बिना निर्मित है और दूसरी वह जो मनुष्य ने अपने जीवन से पाई है और जिसके साथ मनुष्य ने कोई छेड़छाड़ नहीं की है। sources of knowledge
पुरुषों ने संसार की सभी दुखों का कारण तत्कालीन सभ्यता और विज्ञान को बताया इसलिए यह इसके ज्ञान को आवश्यक नहीं मानते थे। आगे चलकर इन्होंने आदर्श राज्य का पूरा खाका तैयार किया और मनुष्य की पूरी शिक्षा योजना तैयार की और शिक्षा द्वारा मनुष्य को वह सब कुछ सिखाने पर बल दिया जो मनुष्य के लिए समग्र रूप से हितकर है। sources of knowledge
ज्ञान प्राप्ति के साधन एवं विधियों के विषय में रूसो का स्पष्ट मत है कि बच्चों को कर्मेंद्रियों द्वारा करके और ज्ञानेंद्रियों द्वारा स्वयं के अनुभव से सीखने दो, ज्ञान बाहर से जबरन ला देने की वस्तु नहीं,स्वयं करके स्वयं के अनुभव से प्राप्त करने की वस्तु है। sources of knowledge


10. जॉन डीवी एवं ज्ञान-
जॉन डीवी उन्हीं वस्तुओं और क्रियाओं के ज्ञान को सत्य ज्ञान मानते थे जिनकी मानव जीवन में उपयोगिता है। डीवी के अनुसार सत्य की खोज क्रियाओं के परिणाम के आधार पर होती है। इनका स्पष्टीकरण है कि क्रिया द्वारा ज्ञान अर्जित होता है और ज्ञान से सत्य का निर्णय होता है। इस प्रकार डीवी क्रिया को ज्ञान प्राप्ति और सत्य की खोज का आधार मानते थे।
डीवी के अनुसार मनुष्य सत्य की खोज के लिए तब अग्रसर होता है जब उसके सामने कोई समस्या उपस्थित होती है। sources of knowledge
सत्य की खोज करने के 5 पद होते हैं-
1. समस्या अथवा कठिनाई की अनुभूति 2. समस्या का स्पष्टीकरण 3. समस्या के संभावित समाधान 4. संभावित समाधान को प्रयोग की कसौटी पर कसना और  5. प्रयोग के परिणामों का अवलोकन और निर्णय निकालना। sources of knowledge

ज्ञान प्राप्ति की विधियां
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