ज्ञान प्राप्त करने के स्रोत (Main Sources of Attainment of Knowledge)-
ज्ञान प्राप्त करने के बहुत सारे स्रोत है। मुख्य रूप से ज्ञान को अनुभव के आधार पर प्राप्त किया जाता है और अनुभव हमारी इन्द्रियों के माध्यम से होता है। मुख्य रूप से ज्ञान हमारे कार्यकलापो तथा अनुभव के आधार पर प्राप्त होता है। इनके आधार पर ज्ञान को निम्न स्रोतों से प्राप्त किया जा सकता है।
ज्ञान के स्रोत (Sources of Knowledge)-
1.इन्द्रियानुभव (Sensory Experience)-
इन्द्रीय अनुभव हमारे ज्ञान का सबसे महत्त्वपूर्ण स्रोत है। मानव की पांच ज्ञानेन्द्रियां कान, नाक, आँख, त्वचा और जीभ आदि ध्वनि,रंग,गंध,ताप तथा रस का ज्ञान देती है जिन्हें हम ज्ञान्द्रियानुभव कहते है। ज्ञान का एक बहुत बड़ा भाग हमे ज्ञानेनिद्रियो से ही प्राप्त होता है। इसलिए इन्द्रियाँ ज्ञान का स्रोत है। जिस ज्ञान की प्राप्ति में अधिक से अधिक ज्ञानेद्रियों का प्रयोग होता है ,वह ज्ञान स्थायी तथा पूर्ण होता है। Sources of Knowledge
2.तर्क बुद्धि (Reasoning)-
तर्क ज्ञान का स्रोत है। तर्क में बुद्धि का सहारा लेकर अनुमान लगाया जाता है तथा इस क्रिया से ज्ञान प्राप्त होता है। बुद्धि का कार्य कल्पना,सोचना,विचारना तथा तर्क देना है। तर्क मानसिक तथा बौद्धिक प्रक्रिया है। इस प्रक्रिया के माध्यम से मानव अपना कोई मत बनाता है। या किसी निष्कर्ष पर पहुँचता है। ज्ञान प्राप्ति के लिए तर्क के अंतर्गत दो विधियाँ होती है जिनका प्रयोग किया जाता है-आगमन तथा निगमन विधियाँ। Sources of Knowledge
3.शब्द या आप्तवचन (Verbal Testimony or Authority)-
आप्तवचन ज्ञान का स्रोत न तो बुद्धि है न ही इन्द्रियानुभव। प्रायः देखा जाता है कि बहुत सा ज्ञान जो हमारे पास है उसे न तो ज्ञानेन्द्रियों के द्वारा प्राप्त किया जाता है तथा न ही इस ज्ञान को प्राप्त करने के लिए बुद्धि का प्रयोग किया गया है। हमे ऐसे ज्ञान के लिए विशेषज्ञ पर निर्भर रहना पड़ता है। ज्ञान के लिए अलग-अलग क्षेत्रों के लिए अलग-अलग विशेषज्ञ होते है। जैसे-रसायन,भौतिकी,इतिहास,गणित आदि के विशेषज्ञ आदि।
उदाहरण-गुरुत्वाकर्षण का सिद्धान्त न्यूटन ने तथा ताजमहल शाहजहाँ ने बनवाया था। ये ज्ञान हमे आप्त वचन से प्राप्त हुआ है। इसलिए ज्ञान भंडार का बहुत बड़ा भाग विशेषज्ञ के कथनों में विश्वास करके प्राप्त किया जाता है। Sources of Knowledge
4.अन्तः प्रज्ञा(Intuition)-
यह ज्ञान एक तरह की अन्तः करण की आवाज है। केवल इसका स्वरूप सपष्ट नही है यह ज्ञान भी न तो इन्द्रियानुभव तथा न ही तर्क बुद्धि द्वारा होता है। अन्तः करण की आवाज से एक अलग तरह का अनुभव होता है। जो पाच इन्द्रियों के अनुभव से परे का अनुभव है। इसलिए उस अनुभव को मनुष्य की छठी इंद्री का भी नाम दिया है। संपूर्णता का बोध और उसकी अनुमति का नाम अन्तः क्रिया है। इसको भाषा के माध्यम से अभिव्यक्त करने में कठनाई आती है। इसमें ज्ञात तथा ज्ञेय दो नही रहते। इस अनुभूति में ज्ञाता ज्ञेय में लीन हो जाता है।
5.प्रयोगात्मक (Experimental)-
इस प्रकार का ज्ञान व्यक्ति वेज्ञानिको द्वारा किये गए प्रयोगों से प्राप्त करता है। ये प्रयोग नियंत्रित स्थति में किये जाते है। इस ज्ञान की पुष्टि अन्य व्यक्तियों द्वारा पुनः प्रयोग करने से की जाती है। प्रयोगों द्वारा ही नियम निकलते जाते है। इस प्रकार प्रयोग द्वारा ज्ञान प्राप्ति की सशक्त विधि है।
6.श्रुति (Revelation)-
श्रुति का सम्बन्ध धार्मिक ज्ञान से होता है। धार्मिक ज्ञान के लिए श्रुति महत्वपूर्ण स्रोत है। चाहे भारत हो या दूसरे देश ,यहाँ के धार्मिक ग्रंथों का आधार श्रुति है। हमारे ऋषि-मुनियों तथा गुरुओ को दिव्य व अलौकिक शक्तियॉ से ज्ञान प्राप्त होता है जो बाहरी कानो से नही सुना जा सकता है अपितु अन्तः करण से सुना जा सकता है। यह ज्ञान काल इर देशों जी सीमाओं से बंधा हुआ नही है। या ज्ञान सार्वभौमिक होता है तथा इसमें किसी प्रकार का परिवर्तन नही किया जा सकता है।
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Thanks a lot.
Thank you very much for this.
Gyan ke jabardast srot hai.
Phle kabhi inke baare me nhi suna.thanks