महर्षि अरविन्द के अनुसार शिक्षा के उद्देश्य, पाठ्यक्रम, अध्ययन विधि एवं अनुशासन

महर्षि अरविन्द के अनुसार शिक्षा के उद्देश्य, पाठ्यक्रम, अध्ययन विधि एवं अनुशासन

aims, curriculum, teaching method and discipline according to Aurobindo.

दोस्तों आज हम यहाँ पर महर्षि अरविन्द के अनुसार शिक्षा के उद्देश्य, पाठ्यक्रम, अध्ययन विधि एवं अनुशासन आदि के बारें में जानेंगे अरविन्द के अनुसार शिक्षा के उद्देश्य

महर्षि अरविन्द ने अनेक प्रकार के लेख लिखे, उनके लेखों के द्वारा उनके शैक्षिक विचारों का पता लग जाता है।
उन्होंने शिक्षा से सम्बन्धित दो पुस्तकें लिखी-इन दो पुस्तकों में शिक्षा सम्बन्धी विचारों को बहुत विस्तार से बताया—

1. ऑन एजूकेशन 2. नेशनल सिस्टम ऑफ एजूकेशन। इन दोनों पुस्तकों द्वारा महर्षि अरविन्द ने शैक्षिक विचारों को हमारे सम्मुख रखा,
उन्होंने मानव अन्तःकरण के चार स्तर माने-चित्त, मन, बुद्धि एवं ज्ञान।
इसलिए इन चारों स्तरों का विकास शिक्षा द्वारा होना चाहिए। मानवीय आन्तरिक शक्तियों का विकास शिक्षा द्वारा हो सकता है,
उन्होंने आध्यात्मिक शिक्षा एवं बौद्धिक शिक्षा दोनों पर बल दिया। उनके अनुसार-
‘शिक्षा मानव का मस्तिष्क और आत्मा की शक्तियों का निर्माण करती है और उसमें ज्ञान, चरित्र और संस्कृति की जागृति करती है। अरविन्द के अनुसार शिक्षा के उद्देश्य

1. शिक्षा के उद्देश्य-महर्षि अरविन्द ने शिक्षा के उद्देश्यों को बहुत विस्तृत रूप से लिया।
शिक्षा को उन्होंने शारीरिक एवं मानसिक शुद्धि का साधन माना और इसी के द्वारा आध्यात्मिक विकास आवश्यक माना,
उनके अनुसार शिक्षा के उद्देश्य निम्नलिखित हैं- अरविन्द के अनुसार शिक्षा के उद्देश्य

(i) आध्यात्मिक विकास—अरविन्द के अनुसार मानव जीवन का अन्तिम उद्देश्य ‘देवी के अंश का खोजना’ और उसको पूर्णता की ओर ले जाना है इसके लिये आध्यात्मिक विकास बहुत आवश्यक है। उन्होंने शिक्षा का सबसे बड़ा महत्त्वपूर्ण उद्देश्य माना ।

(ii) ज्ञानेन्द्रियों का विकास–अरविन्द ने शिक्षा का उद्देश्य ज्ञानेन्द्रियों का विकास माना। उन्होंने योग साधना में ‘इन्द्रियाँ निग्रह’ पहला कदम माना, उन्होंने ज्ञानेन्द्रियों के प्रशिक्षण पर बल दिया। उन्होंने आँख, कान, नाक, जिह्वा और त्वचा के अलावा मस्तिष्क को भी ज्ञानेन्द्रीय माना। वे मस्तिष्क को छठी ज्ञानेन्द्रिय कहते थे । अरविन्द के अनुसार शिक्षा के उद्देश्य

(iii) शारीरिक विकास–महर्षि अरविन्द शरीर के द्वारा ही आध्यात्मिक जीवन की प्राप्ति मानते थे और इसलिये उन्होंने शारीरिक शुद्धि पर विशेष बल दिया। शरीर में यदि कहीं अशुद्धि होगी तो उसके द्वारा योग साधना नहीं की जा सकती। शरीर की शुद्धि के लिए शिक्षण को मानव के शारीरिक विकास पर बल देना चाहिए। अरविन्द के अनुसार शिक्षा के उद्देश्य

(iv) मानसिक विकास–मानसिक शक्तियों का विकास करना भी उन्होंने शिक्षा का उद्देश्य माना। इसमें मानव की कल्पना, स्मृति, तर्क, चिन्तन, निर्णय आदि शक्तियों का विकास करना माना है। इन शक्तियों के बिना मनुष्य ज्ञानेन्द्रियों को नियंत्रण में नहीं रख सकता और न ही आध्यात्मिक की प्राप्ति ही कर सकता है इसलिए बालक की मानसिक शक्तियों का विकास प्रारम्भ से ही करना चाहिए। अरविन्द के अनुसार शिक्षा के उद्देश्य

(v) अन्तःकरण का विकास- अरविन्द के अनुसार शिक्षा का उद्देश्य अन्तःकरण का विकास है और इस अन्त:करण के विकास के चार स्तर अरविन्द ने माने हैं—चित्त, मानव, बुद्धि

(vi) नैतिक विकास – अरविन्द ने शिक्षा का उद्देश्य बालकों में नैतिकता का विकास करना भी माना है। वे बच्चे की प्रवृत्ति, उसकी आदतों व भावनाओं को प्रारम्भ से ही नैतिक विकास बनाना चाहते थे। नैतिक आदर्शों के लिये उन्होंने माना कि मानव की प्रकृति, आदतों व भावनाओं को शुद्ध किया जाना चाहिये ।

(vii) विशिष्ट क्षमता का विकास- अरविन्द यह मानते थे कि सभी मनुष्यों में कुछ विशिष्टतायें होती हैं, अतः शिक्षा का उद्देश्य बालक की उन विशिष्टताओं का अधिकतम विकास करना होना चाहिए। अरविन्द के अनुसार शिक्षा के उद्देश्य

2. महर्षि अरविन्द के अनुसार पाठ्यक्रम-

महर्षि अरविन्द ने शिक्षा के विस्तृत उद्देश्यों को माना, इसलिए उन्होंने पाठ्यक्रम भी बहुत विस्तृत माना। उन्होंने पाठ्यक्रम में उन सभी क्रियाओं पर व विषयों पर बल दिया जिनके द्वारा भी उद्देश्यों की प्राप्ति संभव हो सके। उन्होंने आध्यात्मिक व रोचक पाठ्यक्रम पर बल दिया। उन्होंने पाठ्यक्रम को इस प्रकार स्पष्ट किया है- अरविन्द के अनुसार शिक्षा के उद्देश्य

(i) प्राथमिक स्तर–प्राथमिक स्तर पर अरविन्द ने मातृभाषा के साथ-साथ अंग्रेजी व फ्रेंच भाषा का अध्ययन आवश्यक माना। साथ ही गणित, सामान्य विज्ञान, सामाजिक विज्ञान, चित्रकला आदि विषयों का अध्ययन आवश्यक माना। अरविन्द के अनुसार शिक्षा के उद्देश्य

(ii) माध्यमिक स्तर—माध्यमिक स्तर पर महर्षि अरविन्द ने मातृभाषा के साथ अंग्रेजी, फ्रेंच, गणित, सामाजिक अध्ययन, चित्रकला के साथ-साथ भौतिक शास्त्र, रसायन शास्त्र, जन्तु विज्ञान, वनस्पति विज्ञान, भू-गर्भ विज्ञान, स्वास्थ्य विज्ञान आदि विषयों के अध्ययन पर बल दिया।

(iii) विश्वविद्यालय स्तर– महर्षि अरविन्द ने विश्वविद्यालय स्तर पर अंग्रेजी व फ्रेंच साहित्य के साथ-साथ गणित, भौतिक शास्त्र, रसायन शास्त्र, जीव विज्ञान, विज्ञान का इतिहास, सभ्यता का इतिहास, जीवन का विज्ञान, मनोविज्ञान, समाजशास्त्र, भारतीय का पाश्चात्य दर्शन, अन्तर्राष्ट्रीय सम्बन्ध आदि के अध्ययन पर बल दिया। अरविन्द के अनुसार शिक्षा के उद्देश्य

3. महर्षि अरविन्द के अनुसार विद्यालय-

महर्षि अरविन्द के अनुसार विद्यालय में विद्यार्थियों का सर्वांगीण विकास होना चाहिये। उन्होंने विद्यालयों को योग साधना का केन्द्र माना, वे चाहते थे कि विद्यालय में विना भेदभाव के शिक्षा दी जाय। विद्यालय के द्वारा मानव सेवा एवं श्रम की भावना का विकास किया जाना चाहिए। विद्यालय विश्व-बन्धुत्व की भावना का प्रसार करने का साधन भी होना चाहिए। अरविन्द के अनुसार शिक्षा के उद्देश्य

4. महर्षि अरविन्द के अनुसार अनुशासन–

अनुशासन के सम्बन्ध में महर्षि अरविन्द ने यह बताया कि अनुशासन शारीरिक एवं मानसिक दोनों ही प्रकार की क्रियाओं पर नियंत्रण से अनुशासन शिक्षा के क्षेत्र में बहुत आवश्यक है, इसलिए वे मानते थे कि अनुशासन के लिए सहानुभूतिपूर्ण और प्रेमपूर्ण व्यवहार होना चाहिए। उन्होंने अनुशासन के लिए नैतिकता पर भी बहुत अधिक बल दिया। वे मानते थे कि विद्यार्थियों के सम्मुख अध्यापक आदर्श प्रस्तुत करें। आदर्श आचरण से विद्यार्थी स्वत: हो अनुशासित हो जायेंगे। अरविन्द के अनुसार शिक्षा के उद्देश्य

5. शिक्षक शिक्षार्थी सम्बन्ध –

उन्होंने शिक्षक शिक्षा के बीच सम्बन्धों को बात की। उन्होंने कहा कि शिक्षक एक अच्छा पथ प्रदर्शक होना चाहिए। अध्यापक मनोविज्ञान एवं आध्यात्मिकता का ज्ञाता हो, साथ ही अध्यापक के लिए अरविन्द ने अच्छा योगी होना भी आवश्यक माना है। अध्यापक को यह चाहिए कि को स्वयं ज्ञान प्राप्त करने एवं अपनी अन्तर्निहित शक्तियों का विकास करने में पूरा योगदान पूरा दें।वद्यार्थियों के लिये सत्य की खोज में मदद करने के लिये अच्छे पर्यावरण पर भी उन्होंने दिया, वे विद्यार्थियों की रुचि, योग्यता, रूझान आदि की विभिन्नता के विकास पर भी बल देते थे। अरविन्द के अनुसार शिक्षा के उद्देश्य

6. महर्षि अरविन्द के अनुसार अध्ययन विधि –

महर्षि अरविन्द प्राचीन विद्यालयों को नवीन रूप देना चाहते थे। अरविन्द के अनुसार शिक्षा के उद्देश्य

 

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