जे.कृष्णमूर्ति के अनुसार शिक्षा का अर्थ व उद्देश्य | जे. कृष्णमूर्ति के शैक्षिक विचार

जे.कृष्णमूर्ति के अनुसार शिक्षा का अर्थ व उद्देश्य
जे. कृष्णमूर्ति के शैक्षिक विचार

दोस्तों आज हम यहाँ पर जे.कृष्णमूर्ति के अनुसार शिक्षा का अर्थ व उद्देश्य के बारें में जानेंगे- कृष्णमूर्ति के अनुसार शिक्षा का अर्थ

जे.कृष्णामूर्ति के जीवन दर्शन को अनेक परिस्थितियों और महापुरुषों ने प्रभावित किया। उन पर प्रकृति का गहरा प्रभाव पड़ा।
वे चाहते थे कि प्रत्येक व्यक्ति प्राकृतिक सौन्दर्य को जाने और अपने स्वार्थ के लिए इस प्राकृतिक सौन्दर्य को नष्ट न करें।
वे कहते थे कि शिक्षा केवल पुस्तकों में सीखना या तथ्यों को कंठस्थ करना मात्र नहीं है।
शिक्षा का अर्थ यह भी है कि हम इस योग्य बनें कि पक्षियों के कलरव को सुन सकें,
आकाश को देख सकें, वृक्षों तथा पहाड़ियों के स्वरूप के अनुपम सौन्दर्य का अवलोकन कर सकें और उनके साथ अनुभव कर सकें। कृष्णमूर्ति के अनुसार शिक्षा का अर्थ

जे. कृष्णमूर्ति के शब्दों में-
” शिक्षा द्वारा ही मनुष्य को जीवन का सही अर्थ समझाया जा सकता है और शिक्षा द्वारा ही उसे अनुचित मार्ग से सदमार्ग पर लाया जा सकता है।”

वास्तविक शिक्षा वह है जो मनुष्य को आत्मज्ञान कराए। इनके शब्दों में ‘अन्त:मन का ज्ञान ही शिक्षा है।’

 

जे.कृष्णमूर्ति के अनुसार शिक्षा के उद्देश्य-

कृष्णमूर्ति का चिन्तन देश, काल, परिस्थिति एवं सांस्कृतिक विषमताओं की सीमा से परे जाकर शाश्वत् जीवन को समझाने में मानवता की सहायता करता है।
यही कारण है कि उनके द्वारा बताए गए शिक्षा के उद्देश्यों में भी शाश्वत् की झलक मिलती है।
उन्होंने, भिन्न स्थानों पर और भिन्न-भिन्न समयों पर शिक्षा के उद्देश्यों के सम्बन्ध में भिन्न-भिन्न रूप एवं भाषा में अपने विचार व्यक्त किए हैं।
उनके अनुसार शिक्षा का मूल उद्देश्य एक सन्तुलित मानव का विकास करना है।
ऐसा मानव जो चेतनायुक्त हो, जो सद्भावना से परिपूर्ण हो, जो जीवन का अर्थ और उद्देश्य समझाता हो, जो जाति, धर्म, सम्प्रदाय, संस्कृति आदि कृष्णमूर्ति के अनुसार शिक्षा का अर्थ
किसी भी आधार पर० पूर्वाग्रहों एवं पूर्वधारणाओं से मुक्त हो, जो द्वेष, घृणा और हिंसा जैसे दुष्प्रवृत्तियों से बहुत दूर हो, जो वैज्ञानिक बुद्धि तथा आध्यात्मिकता से समन्वय स्थापित कर सकने की सामर्थ्य रखता हो,
जो मानव-मात्र के जीवन को सुखी बना सकता हो, जो अपने लिए नए मूल्यों का निर्माण कर सकता हो और जो एक नूतन संस्कृति तथा नूतन विश्व का निर्माण कर सकता हो।

कृष्णमूर्ति के अनुसार शिक्षा के इस मूल उद्देश्य की प्राप्ति के लिए निम्नलिखित उद्देश्यों की प्राप्ति आवश्यक हैं-

1. शारीरिक एवं मानसिक विकास-

स्वस्थ मन के लिए स्वस्थ शरीर का होना आवश्यक है, अत: बालक का शारीरिक विकास करना शिक्षा का उद्देश्य है।
कृष्णामूर्ति कहते है कि जब बालक शारीरिक विकारों से मुक्त होगा तभी वह मानसिक रूप से स्वस्थ होगा तथा वह हर क्षण नवीन वस्तु की खोज करने में समर्थ हो सकेगा।

2. सामाजिक विकास-

कृष्णामूर्ति कहते हैं कि व्यक्ति समाज का एक अंग है। उसका विकास समाज में ही होता है। उसकी समस्त आवश्यकताओं की पूर्ति समाज में रहकर ही होती हैं।
ऐसी स्थिति में समाज को प्रत्येक व्यक्ति से सेवा प्राप्त करने का अधिकार है तथा समाज का ऋण चुकाना प्रत्येक व्यक्ति का कर्त्तव्य है। कृष्णमूर्ति के अनुसार शिक्षा का अर्थ

3. आध्यात्मिक मूल्यों का विकास-

कृष्णामूर्ति के अनुसार शिक्षा का उद्देश्य बालक में आध्यात्मिक मूल्यों का विकास करना है। आध्यात्मिकता के विकास से इनका अर्थ
आध्यात्मिक चेतना के विकास से है, आत्म ज्ञान के विकास से है, नैतिक मूल्यों के विकास से है।
शिक्षा का उद्देश्य बालक में ऐसी क्षमता पैदा करना है कि वह अपने विचारों और कार्यों का हर समय निरीक्षण करता रहे।
इसकी प्राप्ति के लिए वे आन्तरिक स्वतन्त्रता, आन्तरिक शान्ति, आत्मानुशासन, धैर्य एवं ज्ञान को आवश्यक मानते हैं।

4. सांस्कृतिक विकास-

कृष्णामूर्ति के अनुसार, “शिक्षा का उद्देश्य ऐसे मानव का निर्माण करना है जो सुसंस्कृत, सभ्य और शिष्ट हो।” इनका कहना है कि शिक्षा का उद्देश् मनुष्य में ऐसी शक्ति एवं अन्तः चेतना का विकास करना है
जिससे वह पूर्वाग्रहों और पूर्व धारणाओं के विरुद्ध धारणा दृढ़पूर्वक खड़ा हो सके और नई संस्कृति व नए मूल्यों का निर्माण कर सके, जिससे एकीकृत मानव का निर्माण हो।
ऐसा एकीकृत मानव जो जीवन को समग्र रूप से इस प्रकार जिए कि सम्पूर्ण संसार के मानव सुख शान्ति से रह सकें। कृष्णमूर्ति के अनुसार शिक्षा का अर्थ

5. वैज्ञानिक बुद्धि का विकास

कृष्णामूर्ति के समय में संसार में विज्ञान एवं तकनीकी का विकास बहुत व्यापक रूप से हो रहा था। विज्ञान के नए-नए आविष्कार हो रहे थे और सभी देशों में विज्ञान और तकनीकी शिक्षा पर बल दिया जा रहा था। कृष्णामूर्ति ने विज्ञान और तकनीकी शिक्षा का विरोध नहीं किया। वे चाहते थे कि इनका प्रयोग मानव कल्याण के लिए किया जाना चाहिए। उनका कहना था कि शिक्षा का उद्देश्य बालक में वैज्ञानिक विकास करना होना चाहिए। वैज्ञानिक बुद्धि से उनका तात्पर्य तथ्यों के वास्तविक स्वरूप को जानने से था।कृष्णमूर्ति के अनुसार शिक्षा का अर्थ

6. सर्जनात्मकता का विकास

कृष्णामूर्ति के अनुसार, शिक्षा का उद्देश्य सर्जनात्मकता का विकास करना है। सर्जनात्मकता से इनका तात्पर्य शरीर, मन और आत्मा तीनों की सृजनशीलता से है। इनके अनुसार बालकों पर दूसरों के विचारों को थोपा नहीं जाना चाहिए, अपितु उन्हें स्वयं निर्णय करने और कार्य करने के स्वतन्त्र अवसर दिए जाने चाहिए। कृष्णमूर्ति के अनुसार शिक्षा का अर्थ

7.संवेदनशीलता का विकास

कृष्णामूर्ति का कहना है कि शिक्षा का उद्देश्य बालक को संवेदनशील बनाना है। इनके अनुसार बालकों में प्रकृति और मानव मात्र के प्रति प्रेम उत्पन्न करना ही सच्ची संवेदनशीलता है। ऐसी संवेदनशीलता में घृणा, द्वेष, क्रोध और हिंसा का कोई स्थान नहीं होगा। बालक भय, प्रतियोगिता और प्रतिस्पर्धा से मुक्त होंगे तथा तब दुनिया में हिंसा नहीं होगी, युद्ध नहीं होंगे।कृष्णमूर्ति के अनुसार शिक्षा का अर्थ

8.चरित्र का निर्माण करना

चरित्र निर्माण शिक्षा का मूलभूत उद्देश्य है। सभी शिक्षाविदों की तरह कृष्णामूर्ति भी यह मानते हैं कि शिक्षा का उद्देश्य बालक के चरित्र का निर्माण करना है। उनके अनुसार चरित्रवान का अर्थ है असत्य को त्यागने और सत्य को अपनाने की सामर्थ्य रखना। अपने लिए स्वयं सोचना और सत्य की खोज करना तथा उस सत्य पर दृढ़ रहना। वे कहते हैं कि सत्य की खोज करने और उस पर अडिग बने रहने से जो चरित्र निर्मित होता है, वह स्थायी और मूल्यवान होता है। ऐसे चरित्रवान व्यक्ति का जीवन अपने आप में एक आनन्द होता है। कृष्णमूर्ति के अनुसार शिक्षा का अर्थ

9.व्यावसायिक प्रशिक्षण

कृष्णामूर्ति यह स्वीकार करते थे कि प्रत्येक व्यक्ति को अपने जीविकोपार्जन के लिए कोई न कोई व्यवसाय अवश्य करना पड़ता है, इसलिए शिक्षा का उद्देश्य व्यक्ति को किसी न किसी व्यवसाय के लिए प्रशिक्षित करना आवश्यक है।

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