क्षेत्रीय असमानता एवं इसके कारण तथा इसको दूर करने में शिक्षा की भूमिका
What do you understand by regional inequality ?
causes, role of education in reducing regional inequality
दोस्तों आज यहाँ पर हम क्षेत्रीय असमानता का अर्थ इसके कारण और क्षेत्रीय असमानता को दूर करने में शिक्षा की भूमिका के बारें में जानेंगे …
क्षेत्रीय असमानता का अर्थ (Meaning of Regional Inequality)-
क्षेत्रीय असमानता वह असमानता है जो एक निश्चित क्षेत्र में बसे समाज की विभिन्न बस्तियों में व्याप्त है तथा दो या अधिक क्षेत्रों में बसे समाजों के बीच में विद्यमान अव्यवस्था, संघर्ष या असंतुलन है अर्थात् क्षेत्रीय असमानता अन्य क्षेत्रीय और अन्तक्षेत्रीय के रूप में विद्यमान होती है। भारतवर्ष में एक ही क्षेत्र में बसे विभिन्न धर्मावलम्बी, भिन्न भाषाई समूह, नृजातियाँ आदि में जो परस्पर संघर्ष, झगड़े, ईर्ष्या, विघटनकारी स्थितियाँ होती हैं उसे अन्तः क्षेत्रीय असमानता कहते हैं। इसी प्रकार से भारत में विभिन्न प्रादेशिक या आंचलिक क्षेत्रों में रहने वाले भाषाई, नृजातीय समूह एवं धर्मावलम्बियों के पारस्परिक संघर्ष को अन्तक्षेत्रीय असमानता कहते हैं।
क्षेत्रीय असमानता के कारण (Causes of Regional Inequality)-
इस असमानता के कुछ कारण स्वाभाविक हैं तथा कुछ मानव द्वारा उत्पन्न किये गए हैं। इन दोनों ही प्रकार के कारणों से राष्ट्र का सन्तुलित विकास अवरुद्ध होता है। क्षेत्रीय असमानता के मुख्य कारण निम्नलिखित हैं-
1. प्राकृतिक तथा आर्थिक संसाधनों में अन्तर-
जलवायु, वर्षा, मिट्टी, खनिज पदार्थ, वन-सम्पदा आदि की दृष्टि से एक राज्य दूसरे राज्य के समान नहीं हो सकता। इसका परिणाम कृषि उपज तथा उद्योग-धन्धों पर दिखाई देता है। उपजाऊ भूमि एवं जल की प्रचुरता वाले राज्य पंजाब तथा निरन्तर जल की कमी एवं सूखे की समस्या का सामना करने वाले राज्य राजस्थान की तुलना नहीं की जा सकती। उपलब्ध आर्थिक संसाधनों का एक बड़ा भाग अकाल एवं राहत कार्यों में व्यय करने वाला राज्य अपनी अन्य विशेषताओं में श्रेष्ठ हो सकता हैं।
2. सांस्कृतिक परम्पराएँ-
कुछ क्षेत्रों की सामाजिक-सांस्कृतिक परम्पराएँ भी क्षेत्रीय असमानता का कारण होती हैं। लिंगभेद, जाति प्रथा, रूढ़ियों का पालन करना तथा नए के प्रति भय का भाव विकास की गति को रोक देते हैं। परम्पराएँ अपने स्वच्छ एवं स्वस्थ रूप में विकास में बाधा उत्पन्न नहीं करतीं किन्तु उनमें कट्टरता तथा संकीर्ण मनोवृत्ति का समावेश क्षेत्रों के लिए प्रगति में बाधा बनता है। जिन क्षेत्रों में सांस्कृतिक परम्पराएँ सामाजिक विकास में सहायक होती हैं वे विकास कर आगे बढ़ जाते हैं।
3. राजनीतिक कारण-
राजनीतिक प्रभाव का प्रयोग सर्वविदित है। विकसित क्षेत्रों का विशिष्ट वर्ग अपने अनुभवों तथा शिक्षा से प्रभावित कर राजनीति में पैठ स्थापित कर लेता है तथा अपने क्षेत्र के लिए अधिकाधिक सुविधाओं को जुटाने में सफल हो जाता है। निहित स्वार्थों को त्याग कर सम्पूर्ण राष्ट्र के हित के लिए भोजनाएँ लेने से क्षेत्रीय असन्तुलन दूर हो सकता है।
4. प्रशासनिक कारण-
क्षेत्रीय असमानताओं का एक कारण प्रशासनिक भी है जिस कारण भिन्न-भिन्न क्षेत्रों का राजकीय योजनाओं में धनराशि का आवंटन समुचित नहीं हो पाता। पंचवर्षीय योजनाओं में राज्यों की विकास दर में भिन्नता का एक कारण प्रशासनिक भी है। राजकीय कोष के अतिरिक्त अन्य आर्थिक स्रोत प्रभावपूर्ण नहीं होते। वित्तीय व्यवस्था के अतिरिक्त अन्य प्रशासनिक सुविधाएँ भी राज्य की विकास प्रक्रिया को निर्धारित करती है।
5. निवेश की मात्रा में अन्तर–
किसी भी क्षेत्र में पूँजी का निवेश जिस अनुपात में किया जाता है वहाँ का विकास भी उसी अनुपात में होता है। कम निवेश कम विकास तथा अधिक निवेश अधिक समृद्धि व विकास प्राय: होता यह है कि विकसित क्षेत्रों में निवेश भी अधिक किया जाता है जिससे विकसित व पिछड़े क्षेत्रों के मध्य असमानतायें स्थायी हो जाती हैं।
6. भाषा की समस्या-
भारत में असमानता का सबसे बड़ा कारण भाषा की समस्या रहा है। भारत में भाषा के आधार पर प्रान्तों का निर्माण किया गया है। राज्य सरकारों की भौगोलिक सीमाओं का निर्धारण भाषा के आधार पर किया गया है तथा केन्द्र सरकार को ऐसा करने के लिए मजबूर किया गया था। इसके उदाहरण पंजाब और हरियाणा का विभाजन, महाराष्ट्र और गुजरात का विभाजन, तेलांगना आदि का निर्माण है।
क्षेत्रीय असमानता को दूर करने में शिक्षा की भूमिका-
1. राष्ट्रीय नीतियों का निर्धारण-
केन्द्र तथा राज्य सरकार को राष्ट्रीय हित में, नीतियों, विकास योजनाओं तथा उद्देश्यों को निश्चित करना चाहिए, निश्चित करने के उपरान्त किसी भी प्रकार के दबाव या सुझाव के कारण उसमें परिवर्तन नहीं करना चाहिए।
2. देश का सन्तुलित विकास-
सरकार को देश का सन्तुलित विकास करना चाहिए। विकास की योजनाएँ ऐसी बनानी चाहिए कि जिससे देश के सभी क्षेत्रों को समान रूप से लाभ मिले। सर्वप्रथम सभी क्षेत्रों की अनिवार्य आवश्यकताओं को पूरा करना चाहिए। किसी एक या कुछ क्षेत्र विशेषों का ध्यान विकास योजनाओं में प्रावधान रखने के कारण अन्य क्षेत्र आन्दोलन करते हैं। उनमें तनाव पैदा होता है। इस सब को समाप्त करने के लिए देश का सन्तुलित विकास उत्तम समाधान है। क्षेत्रीय असमानता का अर्थ
3. दबावपूर्ण नीति का त्याग –
केन्द्र तथा राज्य सरकारें क्षेत्रों के द्वारा माँग करने पर दबाव में आ जाती हैं। कई बार क्षेत्रीय नेता आमरण अनशन या आत्मदाह की धमकी देते हैं और सरकार अपने निर्णय बदल देती हैं। सरकार की इस कमजोरी से असमानता बढ़ती है। इसलिए सरकार को कठोर नीति अपनानी चाहिए तथा दबावपूर्ण नीति का त्याग करना चाहिए। जिससे क्षेत्रीय असमानता समाप्त हो सकेगी।
4. केन्द्र की सक्रिय नीति—
क्षेत्रीयता के आधार पर विभिन्न राज्यों में परस्पर अनेक विवाद चलते रहते हैं, जैसे—पानी का बँटवारा, विकास कार्यक्रमों में विभिन्न मदों पर व्यय आदि । केन्द्र सरकार ऐसे मामलों में तुरन्त निर्णय लेने के स्थान पर मूकदर्शक बनी रहती है। केन्द्र सरकार को सक्रिय तथा निर्णायक भूमिका पूरी करनी चाहिए तथा राज्यों पर नियंत्रण रखना चाहिए। इससे क्षेत्रीय असमानता उत्पन्न ही नहीं होगी।
5. सांस्कृतिक एकीकरण–
सरकार को चाहिए कि वह देश के संस्कृतिकरण के लिए प्रयास करे। शिक्षा के पाठ्यक्रम, सांस्कृतिक कार्यक्रमों, आकाशवाणी, दूरदर्शन, यातायात के साधन, संस्कृतियों में एकता, समन्वय तथा सौहार्द्र की भावना पैदा करके एकीकरण करें। संस्कृतियों में जितनी कम भिन्नता होगी, क्षेत्रीय असमानता उतनी ही कम होगी।
6. अन्तर्राष्ट्रीय एजेन्सियों का सहयोग-
क्षेत्रीय असन्तुलन को दूर करने के लिए विदेशों से तकनीकी तथा वित्तीय सहयोग लिया जाना चाहिए। क्षेत्रीय असन्तुलन या असमानताओं को दूर करना राष्ट्रीय विकास के लिए अत्यावश्यक है। इस दिशा में केन्द्र, राज्य एवं गैर-सरकारी संगठनों (NGO) को सम्मिलित प्रयास करने होंगे तभी वांछित सफलता प्राप्त हो सकेगी। शिक्षा द्वारा इस दिशा में वांछित प्रयास किया जा सकता है। शैक्षिक योजनाओं में इस असमानता को दूर करने के प्रयास भी सम्मिलित किये जाने चाहिए।
7. आधार ढाँचे को सुदृढ़ करने की नीति–
ऊर्जा, परिवहन, जलापूर्ति आदि का समुचित विकास आधार ढाँचे का अंग है। इन्हें उत्पादन एवं सर्वसाधारण के उपयोग, दोनों दृष्टि से विकसित किया जाना अनिवार्य है। न्यूनतम आवश्यकता कार्यक्रम (M.N.P.) के अन्तर्गत भी इनको बढ़ाना आवश्यक है। इनसे ग्रामीण क्षेत्रों में सुविधाएँ उपलब्ध कराने में सरलता रहती है। पिछड़े हुए क्षेत्रों में आधार ढाँचे को सुदृढ़ करना क्षेत्रीय असमानता को नियन्त्रित करने का उपाय है। नगरीय एवं ग्रामीण क्षेत्रों के आधार पर व्याप्त असमानताओं को दूर करने के लिए भी आधार-ढाँचा सुदृढ़ होना चाहिए। क्षेत्रीय असमानता का अर्थ
8. केन्द्र प्रवर्तित परियोजनाएँ-
केन्द्र द्वारा केन्द्र-प्रवर्तित योजनाओं को राज्यों को हस्तान्तरित करने तथा विभिन्न विकास कार्यक्रमों की सहायता से भी क्षेत्रीय असमानतायें दूर की जा सकती हैं। राज्य अपनी आवश्यकतानुसार महिला विकास, बाल-विकास, साक्षरता, स्वास्थ्य सेवा एवं अन्य कल्याणकारी योजनाओं में केन्द्र से मिले धन का उपयोग कर सकेगा।
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