गाँधीवादी गाँधीजी के अनुसार शिक्षा के उद्देश्य, पाठ्यक्रम और शिक्षक-शिक्षार्थी सम्बन्धों की विवेचना

गाँधीवादी शिक्षा दर्शन के अनुसार शिक्षा के उद्देश्य , पाठ्यक्रम और शिक्षक-शिक्षार्थी सम्बन्धों की विवेचना

Discuss Aims of Education, curriculum and Teacher Pupil relationship according to Gandhian Philosophy of Education.

आज हम यहाँ गाँधीजी के अनुसार शिक्षा के उद्देश्य, पाठ्यक्रम और शिक्षक-शिक्षार्थी सम्बन्धों की विवेचना करने वाले है-

 

गाँधीजी के अनुसार शिक्षा का अर्थ –

गाँधीजी देश की समस्याओं के प्रति संवेदनशील थे।
उन्होंने अंग्रेजों द्वारा चलाई जा रही Three R’s (Reading, writing and arithmetic) की शिक्षा के तात्कालिक एवं दूरगामी प्रभावों पर विचार किया
और वे इस निष्कर्ष पर पहुँचे कि साक्षरता की यह शिक्षा, शिक्षा नहीं है। अत: उन्होंने कहा कि शिक्षा का अर्थ केवल साक्षरता नहीं है।
साक्षरता को शिक्षा नहीं कहा जा सकता। केवल साक्षरता शिक्षा का ध्येय नहीं है। साक्षरता न शिक्षा का आदि है और ना अन्त ।
इस प्रकार गाँधीजी ने तत्कालीन शिक्षा प्रणाली पर कठोर प्रहार कर देश की आवश्यकता, क्षमता के अनुरूप शिक्षा प्रणाली का आधार प्रस्तुत किया।

इस शिक्षा प्रणाली में वे सभी तत्त्व सम्मिलित किये गये जिससे राष्ट्र का आर्थिक, सामाजिक एवं राजनीतिक विकास हो सके।
अत: गाँधीजी द्वारा प्रतिपादित शिक्षा प्रणाली को ‘राष्ट्रीय शिक्षा प्रणाली‘ अथवा ‘भारतीय शिक्षा प्रणाली’ नाम दिया जाये तो कोई अत्युक्ति नहीं होगी।
गाँधीजी शिक्षा को परिभाषित करते हुए लिखते हैं-“शिक्षा से मेरा अभिप्राय बालक तथा मनुष्य में निहित शारीरिक, मानसिक एवं आत्मिक श्रेष्ठ शक्तियों का सर्वांगीण विकास है।

गाँधी ने दूसरी जगह शिक्षा को “सा विद्या या विमुक्तये’ (शिक्षा वह है जो मुक्ति दिलाये ) के रूप में परिभाषित किया है।

 

गाँधीजी के अनुसार शिक्षा के उद्देश्य –

 

1. व्यक्ति की अन्तर्निहित क्षमताओं का प्रस्फुटन-

महात्मा गांधी ने हरिजन पत्रिका में शिक्षा की जो व्याख्या की, उससे शिक्षा का प्रमुख उद्देश्य बालक या व्यक्ति के मस्तिष्क एवं आत्मा में निहित क्षमताओं का पूर्ण विकास करना माना गया है। गाँधीजी के अनुसार शिक्षा के उद्देश्य

2. स्वावलम्बन का उद्देश्य–

शिक्षा का उद्देश्य व्यक्ति को स्वावलम्बी बनाना होना चाहिये जिससे वह अपनी आजीविका कमा सके और आत्म निर्भर बन सके।
अंग्रेजी शिक्षा विद्यार्थियों को आत्म निर्भर बनाने में असमर्थ थी। इसी कारण उन्होंने बुनियादी शिक्षा को उद्योग केन्द्रित बनाया।

3. काम करने की भावना का विकास-

अंग्रेजी शिक्षा विद्यार्थियों को काम करने से विमुख करती थी। विद्यार्थी अपना काम स्वयं करने में शर्म का अनुभव करते थे।
महात्मा गाँधी ने देश की समस्याओं की जड़ अर्थात् काम न करने की भावना को पाया। उनके अनुसार शिक्षा वह है जो व्यक्ति को कर्म से विमुख न करें।
अत: शिक्षा का महत्त्वपूर्ण उद्देश्य व्यक्ति में श्रम करने की भावना का विकास करना होना चाहिये।

4. चारित्रिक एवं नैतिक विकास–

शिक्षा का उद्देश्य उच्च चरित्र का निर्माण एवं नैतिक गुणों का विकास करना है। चरित्र निर्माण हेतु गांधीजी मन वचन कर्म की पवित्रता पर बल देते थे।
विद्यार्थी जीवन में ब्रह्मचर्य के पालन पर विशेष बल देते थे। गाँधीजी के अनुसार शिक्षा के उद्देश्य

5. सामाजिक विकास

वैयक्तिक विकास के साथ-साथ सामाजिक कल्याण करना भी शिक्षा का उद्देश्य होना चाहिये।
व्यक्ति अपने कल्याण के साथ-साथ समाज का भी भला सोचे। गाँधीजी की सर्वोदय की भावना सामाजिक विकास को लेकर ही निर्मित हुई।

6. सामाजिक बुराइयों का विनाश-

महात्मा गांधी ने समाज में अनेक बुराइयाँ पाई। बाल विवाह, दहेज प्रथा, स्त्रियों की हीन दशा एवं छुआछूत जैसी सामाजिक बुराइयों को शिक्षा द्वारा ही समाप्त किया जा सकता है।

7. खाली समय का सदुपयोग–

अंग्रेजी शिक्षा कार्य विमुख थी। अत: खाली समय को विद्यार्थी यूँ ही व्यर्थ बातों में व्यतीत करते थे।
अत: गांधीजी ने शिक्षा को उद्योग के साथ जोड़ा ताकि पढ़े लिखे व्यक्ति अपने खाली समय का सदुपयोग कर सकें।
इस प्रकार गाँधीजी के अनुसार खाली समय का सदुपयोग करना भी शिक्षा का महत्त्वपूर्ण उद्देश्य था।

8. आध्यात्मिक विकास— गाँधीजी के अनुसार शिक्षा के उद्देश्य

महात्मा गाँधी आत्मा एवं परमात्मा के अस्तित्व को स्वीकार करते थे और मनुष्य को ईश्वर का अंश मानते थे।
अतः शिक्षा का उद्देश्य ज्ञान प्राप्त कर सत्य या ईश्वर में विलीन होना मानते थे।
सत्य, अहिंसा, परोपकार एवं सदाचार आध्यात्मिक विकास के साधन हैं

छात्र-अध्यापक सम्बन्ध-

गाँधीजी ने अध्यापक छात्र सम्बन्धों पर गहराई से विचार किया है।
महात्मा गाँधी शिक्षक की भूमिका बहुत ही महत्त्वपूर्ण मानते थे क्योंकि अध्यापक को ही राष्ट्र निर्माता कहा जाता है।
वह विद्यार्थियों को विषयों का ज्ञान ही नहीं देता बल्कि उनके चरित्र का भी निर्माता है।उसके हृदय में विद्यार्थियों के प्रति वही प्रेम होना चाहिए जो माता-पिता का अपनी सन्तान के प्रति होता है।
उसे बालक की व्यक्तिगत विभिन्नताओं को ध्यान में रखकर शिक्षा देनी चाहिए।

अतः शिक्षक अपने विषय का विद्वान, आदर्श चरित्र वाला व्यक्ति होना चाहिए।
उसे विद्यार्थियों के साथ सहानुभूति से पेश आना चाहिए।

छात्र को भी विद्यार्थी जीवन में ब्रह्मचर्य का पालन करने वाला होना चाहिए।
वह संयमी तथा सादा जीवन व्यतीत करने वाला हो। गुरु का सम्मान करना उसका धर्म होना चाहिए।
सत्य, अहिंसा एवं परोपकार का मार्ग अपनाने में उसे रुचि लेनी चाहिए और स्वयं हाथ से अपना काम करने में शर्म का अनुभव न करने वाला होना चाहिए।

संक्षेप में हम कह सकते हैं कि महात्मा गाँधी अध्यापक को आदर्श व्यक्ति के रूप में देखना चाहते थे जो विद्यार्थियों के समक्ष उदाहरण प्रस्तुत करने वाला हो।
दूसरी ओर विद्यार्थी भी सच्चे शब्दों में शिष्य के सभी गुण रखने वाला होना चाहिए जो सीखने की जिज्ञासा रखता हो और अध्यापक में पूरी श्रद्धा रखे।
महात्मा गाँधी ने एक जगह लिखा है कि अपने अध्यापक के प्रति अनादर एवं अपमान की बात समझ में नहीं आती। यह आचरण अशिष्टता के अन्तर्गत आता है और अशिष्टता हिंसा है।

समीक्षा— गाँधीजी की शिक्षा योजना में आधुनिक शिक्षा प्रणालियों की सभी मुख्य विशेषताएँ दिखाई पड़ती हैं।

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