शिक्षा के वैयक्तिक, सामाजिक, राष्ट्रीय एवं अन्तर्राष्ट्रीय उद्देश्य
individual,Social, national and international objectives of education
आज हम विभिन्न प्रकार से शिक्षा के उद्देश्य के बारें में जानेंगे – शिक्षा के उद्देश्य
शिक्षा के वैयक्तिक उद्देश्य-
इस उद्देश्य के समर्थक एवं प्रतिपादक, व्यक्ति को समाज में अधिक महत्व देते हैं।
व्यक्तियों ने ही मिलकर अपनी आवश्यकताओं की पूर्ति एवं अपने हितों की रक्षार्थ समाज का निर्माण किया है।
व्यक्तियों के योगदान से ही समाज की उन्नति एवं प्रगति हो पाई है। यदि व्यक्ति का विकास होगा तो समाज स्वत: ही विकसित होता है शिक्षा के उद्देश्य
उन्नति के पथ पर अग्रसर होगा।
अत: शिक्षा एवं उसके उद्देश्य इस प्रकार के हों ताकि व्यक्तिगत रुचियों, क्षमताओं, गुणों, अन्तर्निहित शक्तियों एवं विशेषताओं का विकास हो सके। शिक्षा के उद्देश्य
अनेक शिक्षाविदों एवं शिक्षाशास्त्रियों ने इस उद्देश्य का प्रबल समर्थन किया है, जिनमें से प्रमुखत: रूसो, पेस्टालॉजी, फ्राबेल तथा नन का नाम उल्लेखनीय है । शिक्षा के उद्देश्य
शिक्षा के सामाजिक उद्देश्य–
इस उद्देश्य के समर्थ एवं प्रतिपादक व्यक्ति की अपेक्षा समाज को अधिक महत्त्व देते हैं।
इनके अनुसार व्यक्ति का समाज से अलग कोई अस्तित्व नहीं है।
व्यक्ति का समाज में ही जन्म होता है तथा समाज में रहकर ही वह अपनी उन्नति एवं प्रगति करता है।
इसकी भाषा, शिक्षा, विचार-अभिव्यक्ति समाज में ही विकसित हो सकती है। समाज की उन्नति से ही मानव प्रत्येक क्षेत्र में प्रगति करता है
अत: समाज उन्नत और प्रगतिशील हो ऐसी
शिक्षा-व्यवस्था की जानी चाहिये तथा शिक्षा के उद्देश्यों का निर्धारण भी समाज की तात्कालिक आवश्यकताओं के अनुरूप ही होना चाहिये, शिक्षा के उद्देश्य
इस तथ्य को ध्यान में रखकर ही शिक्षाशास्त्रियों ने शिक्षा के सामाजिक उद्देश्य पर बल दिया है।
शिक्षा के राष्ट्रीय उद्देश्य- शिक्षा के उद्देश्य
इस उद्देश्य के समर्थक राष्ट्र के महत्त्व को स्वीकार करते है।
शिक्षा को चाहिये कि वह ऐसे व्यक्तियों का निर्माण करे जो स्वतंत्रतापूर्वक अपनी शक्ति के अनुरूप राष्ट्र के कल्याण में भाग ले सकें।
राष्ट्र तभी उन्नति के शिखर पर पहुँच सकता है,
जब राष्ट्र के व्यक्ति इस दिशा में सोचें और विचारें तथा त्वरित गति से अग्रसर होने का प्रयास करें।
- राष्ट्र की उन्नति के लिए व्यक्तियों को सदनागरिक बनाने के लिए शिक्षा की व्यवस्था इस प्रकार की जावे कि प्रत्येक व्यक्ति समाज एवं राष्ट्र-सेवा की भावना से ओत-प्रोत हो जावे तथा सच्चा राष्ट्र-भक्त नागरिक बन जावे।
- बालक को सदनागरिक बनाने के लिए उसकी समस्त शक्तियों का विकास करने हेतु उसे ऐसे अवसर प्रदान करने चाहिये, जिससे वह अपने कर्त्तव्य एवं अधिकारों को समझकर राष्ट्र की विविध समस्याओं के विषय में स्पष्ट तथा स्वतंत्र चिन्तन कर
सके और उन्हें सुलझाने में अपना योगदान प्रदान कर सके।
शिक्षा के अन्तर्राष्ट्रीय उद्देश्य-
शिक्षा के अन्तर्राष्ट्रीय उद्देश्यों के अन्तर्गत शिक्षा के वे उद्देश्य आते है जो किसी वर्ग, जाति, समुदाय राष्ट्र या व्यक्ति विशेष का अंश मात्र
भी भेदभाव नहीं रखते हुये समस्त मानव जाति के कल्याण एवं उत्थान के लिये निर्धारित किये जाते हैं।
सामान्य, उदार मानवीय गुणों के
विकास पर ये उद्देश्य बल देने वाले तथा सभी दर्शनों द्वारा स्वीकार्य होते हैं। इनका आधार दर्शन होता है
इनकी उपयोगिता सभी देशों व सभी समय में होती है। इनमें सार्वभौमिक तत्त्व निहित होता है।
चरित्र विकास, ज्ञानोपार्जन, सांस्कृतिक उन्नयन, आत्मानुभूति आदि ऐसे ही अन्तर्राष्ट्रीय उद्देश्य हैं।
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