योग शिक्षा का अर्थ,अंग,लक्ष्य, क्षेत्र,विशेषताएँ,महत्त्व,कार्य एवं विकास | योग शिक्षा पर निबंध | Yoga Education

योग शिक्षा पर निबंध [ Essay on Yoga Education ]

योग शिक्षा Yoga Education

दोस्तों आज यहाँ पर पर योग शिक्षा पर निबन्ध लिखा जा रहा है जिसमे योग शिक्षा का अर्थ,अंग,लक्ष्य,प्रकार, क्षेत्र,विशेषताएँ,महत्त्व,कार्य एवं विकास आदि के बारे में विस्तार से बताया गया है-

‘योग’ “युज धातु” से बना है जिसका अर्थ ‘मिलाना’ अथवा ‘जोड़ना’ है। दो वस्तुओं को मिलाना ही योग है। योग के कुछ प्रमुख उदाहरण इस प्रकार है-

  1. शक्ति को सिर से मिलाना ।
  2. आत्मा को परमात्मा से मिलाना ।
  3. चन्द्र को सूर्य से मिलाना ।

जो विज्ञान हमें इन सब बातों का ज्ञान कराता है वही योग विज्ञान है। योग विज्ञान को समझकर और योगासन करके हम अपने शरीर और मन को शुद्ध करते हैं। योग की विभिन्न परिभाषाएँ विभिन्न विद्वानों ने विभिन्न ढंग से दी हैं। शरीर और मन को एकाग्र करके परमात्मा को एक सुर होने के मार्ग को योग के नाम से जाना जाता है।

एक अन्य विद्वान ने लिखा है, “योग वह क्रिया या साधन है जिसके द्वारा आत्मा, परमात्मा से मिलती है महर्षि पतंजलि के अनुसार, “चित्त की वृत्ति का नाम योग है।” कुछ योग चित्त की वृत्तियों को रोकता है और मन की स्थिरता को प्राप्त कराता है।

व्यास जी का मत है, “योग का अर्थ समाधि है।” श्रीमत् भगवत्गीता में लिखा हैं, “कर्मों में कुशलता ही योग है।” रामायण और महाभारत के अनुसार “योग मुक्ति प्राप्ति का साधन है। डॉ. सम्पूर्णानन्द के अनुसार, “योग आध्यात्मिक कामधेनु है जिससे जो माँगों मिलता है।

 

उपर्युक्त विवेचन से हम इस निष्कर्ष पर पहुँचते हैं कि योग से मानव शरीर स्वस्थ होता है, मन एकाग्र होता है और आत्मा एवं परमात्मा का मिलना आसान हो जाता है। योग विज्ञान के माध्यम से मानव अपने शारीरिक, मानसिक, बौद्धिक और आध्यात्मिक विकास करने में सफल होता है।

 

योग के अंग [yoga poses]

महर्षि पातंजलि ने योग के 8 अंग बताये हैं जिनका परिचय यहाँ किया गया है

  1. यम-यम के अन्तर्गत अनुशासन और वे समस्त साधन सम्मिलित हैं जो मनुष्य के मन से सम्बन्धित हैं। यम के अन्तर्गत अहिंसा, सत्य, अस्तेय, ब्रह्मचर्य और अपरिग्रह आते हैं।
  2. नियम-इसके अन्तर्गत वे ढंग सम्मिलित हैं जिनका सम्बन्ध मनुष्य के शारीरिक अनुशासन से होता है। शरीर और मन की शुद्धि, संतोष, दृढ़ता और ईश्वर में अटूट विश्वास नियम के अन्तर्गत आता है।
  3. आसन-आसन शब्द से तात्पर्य है मानव शरीर को अधिक से अधिक समय के लिये विशेष स्थिति में रखना। उदाहरण के लिये रीढ़ की हड्डी को बिल्कुल सीधे रखकर टांगों को किसी विशिष्ट दशा में रखकर बैठने की क्रिया को पद्मासन कहते हैं।
  4. प्राणायाम-प्राणायाम से तात्पर्य है एक स्थिर स्थान पर बैठकर किसी विशिष्ट विधि के अनुसार साँस को बाहर ले जाना और फिर बाहर निकालना
  5. प्रत्याहार–मन और इन्द्रियों को उनसे सम्बन्धित क्रिया से हटाकर ईश्वर की ओर लगाना प्रत्याहार है ।
  6. धारणा–धारणा से तात्पर्य है मन को किसी इच्छित विषय में लगाना। एक ओर ध्यान लगने से मनुष्य में महान शक्ति उत्पन्न होती है और उसके मन की इच्छा पूरी होती है।
  7. ध्यान—यह अवस्था धारणा से ऊँची है। इसमें व्यक्ति सांसारिक भटकनों से ऊपर उठकर अपने आप में अन्तर्ध्यान हो जाता है। योग के प्रथम चार अंगों का अभ्यास सभी सांसारिक व्यक्ति करते हैं
  8. समाधि-समाधि के समय मनुष्य की आत्मा परमात्मा में लीन हो का अभ्यास ऋषि, मुनि और योगी करते हैं।

 

योग की विशेषताएँ [characteristics of yoga]-

    1. योग सुखी जीवन जीने की सरल एवं प्रभावशाली श्रेष्ठ विधि है जिसके द्वारा मनुष्य का शरीर पूर्ण स्वस्थ, इन्द्रियों में अपार शक्ति मन में अपूर्व आनन्द, भावों कषायों की न्यूनता और सजगता आती है वही सच्चा योग होता है।
    2. योग के द्वारा शरीर से रोग, इन्द्रियों से थकावट व कमजोरी, मन से चिन्ता, भय वतनाव, आवेगों से अपने आप को मुक्त रखा जा सकता है। कई बार बीमारी के आने से पहले ही उसे टाला भी जा सकता है।
    3. योग वह शैली है जो व्यस्त जीवन में कोल्हू के बैल की तरह पिसते व्यक्ति को राहत की एक किरण के रूप में दिखाई देती है।
    4. योग वह पद्धति है जो मनुष्य को दिमागी सुकून, शारीरिक स्वास्थ्य के साथ-साथआध्यात्मिक शांति भी प्रदान करता है। इसलिये व्यक्ति अपनी निजी जिन्दगी में सेकुछ समय निकाल कर शांति प्राप्त करने और तनाव मुक्त होने के लिये ऐसा कुछकरना चाहता है जिससे उसका शरीर स्वस्थ एवं प्रसन्न और चित्त की आवृत्तियाँआन्तरिक हो सके। योग के बाद व्यक्ति शारीरिक तौर पर स्वस्थ और मानसिक रूप से तरोताजा महसूस करता है I

योग का महत्त्व [importance of yoga]

योग की क्रियाओं से शारीरिक सौष्ठव की भावना विकसित होती है।

  • शरीर मानसिक व्याधियों से मुक्त हो जाता है। यह शारीरिक विकास एवं आध्यात्मिक विकास की सर्वोपरि साधन है तथा इससे दिनचर्या अच्छी बनती है। योग से श्वास-प्रश्वास क्रिया सशक्त बनती है, मांसपेशियों व नाड़ियों का नियंत्रण सुचारू व समन्वित होता है तथा अन्त: स्रावी ग्रन्थियों पर अनुकूलन प्रभाव पड़ता है।
  • शरीर के जोड़ और कशेरूका-कण्टक सख्त नहीं पड़ते और धकान बिल्कुल महसूस नहीं होती है। इसमें समाधि अवस्था में पहुँचने का प्रयास है।
  • योग में व्यक्ति मन, शरीर और इन्द्रियों को आपस में समन्वित और साधकर एक ओर लगाता है। योग शिक्षा से छात्रों का मानसिक, बौद्धिक, आध्यात्मिक एवं शारीरिक विकास होता है। योग पद्धति भारतीय प्राचीन संस्कृति की अमूल्य निधि है। योग से शरीर स्वस्थ, निरोग रहता है तथा अंग पुष्ट होते हैं।

 

योग का उद्देश्य शरीर और मस्तिष्क के बीच पूर्ण सन्तुलन तथा व्यक्ति व ब्रह्माण्ड के बीच पूरी तरह तालमेल स्थापित करना है। योग पूर्ण व्यक्तित्व का निर्माण और मस्तिष्क की स्थिरता प्रदान करने वाली प्रक्रिया भी है। आसनों से छात्रों का ‘ध्यान एकाग्र’ रहता है तथा इनसे शरीर की अनेक बीमारियाँ दूर हो जाती हैं।

स्वास्थ्य मनुष्य की अमूल्य निधि है। हमें ऐसे प्रयास करने चाहिए ताकि हम स्वस्थ एवं शक्तिशाली राष्ट्र का निर्माण कर सकें। हमें अपनी जीवन-शैली इस प्रकार की अपनानी चाहिए ताकि हन अस्वस्थ एवं रूग्ण न बनें। योग-पद्धति हमें पूर्ण स्वास्थ्य का वरदान प्रदान कर सकती है।

 

योग शिक्षा yoga education

योग हमारे व्यक्तिगत तथा सामाजिक जीवन की पूर्णता के लिये आवश्यक तथा उपयोगी है। इसलिये इसे ठीक प्रकार से समझने जानने, क्रियाओं का क्रियात्मक ज्ञान तथा उसमें निहित आवश्यक सावधानियों तथा लाभों की पूरी जानकारी प्राप्त करना तथा विद्यालयों के समक्ष इन्हें रखना तथा उन्हें योग-क्रियाओं के लिये प्रेरित करना बहुत आवश्यक है।

योग साधना से विद्यार्थियों का शारीरिक तथा मानसिक विकास सम्भव हो सकता है। योग शिक्षा विद्यार्थियों के हित में है। योग शिक्षा विद्यार्थियों में एकाग्रचित्तता पैदा करेगी, जिससे वे पढ़ाई में ज्यादा ध्यान देने में सफल होंगे।

 

योग के विभिन्न प्रकार [Different types of yoga]

1.योग शिक्षा की विषय-वस्तु-योग शिक्षा की निम्न विषय-वस्तु हो सकती हैं-

2.योग से अभिप्राय, योग क्या है, विभिन्न धर्मों के आचार्यों के विचार ।

3.योग की व्यक्तिगत तथा सामाजिक दृष्टि से उपयोगिता ।

4.योग से संबंधित प्राचीन पुस्तकों तथा ग्रन्थों की जानकारी ।

5.अष्टांग योग के सभी अंगों की सैद्धान्तिक तथा क्रियात्मक जानकारी।

6.यौगिक क्रियाएँ तथा यौगिक आहार। जिससे शरीर सुन्दर तथा शक्तिशाली बन सके।

7.मानसिक विकास के लिये यौगिक क्रियाओं की जानकारी।

8.शारीरिक, मानसिक विकास के साथ-साथ आध्यात्मिक आनन्द की प्राप्ति। अर्थ, काम, धर्म तथा सबसे महत्त्वपूर्ण मोक्ष की प्राप्ति। आत्मा का परमात्मा से मिलन।

9.योग शिक्षा के उद्देश्य शिक्षा संस्थाओं में योग शिक्षा के निम्नलिखित उद्देश्य हो सकते हैं.

10.योग साधना के माध्यम से विद्यार्थियों के आत्मिक तथा आध्यात्मिक विकास में सहायता करना।

11.विद्यार्थियों के शारीरिक विकास का मार्ग प्रशस्त करना।

12.युवा-वर्ग को विभिन्न रोगों से ग्रसित न होने देना।

13.योग-साहित्य तथा योग आचरण से उनमें अच्छे संस्कार डालना। युवा पीढ़ी को मानवीय मूल्यों का ज्ञान करवाना।

14.रोगों से ग्रसित न होने देना।

15.रोग-ग्रस्त होने की दशा में यौगिक क्रियाओं से रोग-

16.मुक्त होने के उपाय बताना ।

17.युवा वर्ग की मानसिक शक्तियों के उपयुक्त विकास में सहायता प्रदान करना।

18.युवा पीढ़ी को मानसिक अशांति तथा तनाव मुक्त जीवन जीने की कला से परिचित करवाना ।

19.यौगिक क्रियाओं से तन तथा मन को स्वस्थ तथा सुन्दर बनाने के उपाय बताना।

20.विद्यार्थियों को भोग-विलास से दूर रहकर ब्रह्मचर्य का पालन करते हुए शिक्षा प्राप्त करना ।

21.विद्यार्थियों को संवेगात्मक रूप से स्थिर तथा सबल बनाने में सहायता करना।

22.विद्यार्थियों के नैतिक तथा चारित्रिक उत्थान में सहायता देना।

 

योग शिक्षा से मानसिक एवं शारीरिक विकास (Mental and Physical Development by Education of Yoga)—

योग शिक्षा से छात्रों का मानसिक एवं शारीरिक विकास होता है। सर्वप्रथम तो शरीर के स्वास्थ्य का महत्त्व है। विभिन्न प्रकार के आसनों से शरीर की अनेक बीमारियाँ दूर हो जाती हैं।

“स्वस्थ शरीर में स्वस्थ मस्तिष्क रहता है।”

“आसनों से छात्रों का ध्यान एकाग्र रहता है।”

 

अरस्तु के अनुसार, “स्वस्थ शरीर में स्वस्थ मस्तिष्क निवास करता है” इस कथन की पुष्टि में बालक के व्यक्तिगत स्वास्थ्य से उसका शारीरिक व मानसिक विकास होता है।

हम जानते हैं कि शारीरिक शिक्षा से बालक का शारीरिक, मानसिक, आध्यात्मिक एवं संवेगात्मक (भावात्मक) विकास होता है।

 विभिन्न प्रकार के आसनों से शरीर की अनेक बीमारियां दूर हो जाती है। इनसे छात्रों का ध्यान एकाग्र रहता है। योग शिक्षा से छात्रों का मानसिक एवं शारीरिक विकास होता है।

सर्वप्रथम तो शरीर के स्वास्थ्य का महत्त्व है। विभिन्न प्रकार के आसनों से शरीर की अनेक बीमारियां दूर हो जाती हैं। स्वस्थ शरीर में स्वस्थ मस्तिष्क रहता है।

आसनों से छात्रों का ध्यान एकाग्र रहता है क्योंकि मन, शरीर और इन्द्रियों को आपस में समन्वित करके चित्त की प्रवृत्तियों को रोका जा सकता है।

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3 thoughts on “योग शिक्षा का अर्थ,अंग,लक्ष्य, क्षेत्र,विशेषताएँ,महत्त्व,कार्य एवं विकास | योग शिक्षा पर निबंध | Yoga Education”

  1. naturally like your web site however you need to take a look at the spelling on several of your posts. A number of them are rife with spelling problems and I find it very bothersome to tell the truth on the other hand I will surely come again again.

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